Showing posts with label दुश्मन. Show all posts
Showing posts with label दुश्मन. Show all posts

Tuesday 28 January 2020

धरोहर - इक चुनौती

ये सिरमौर मेरा, ये अभिमान हैं हमारे,
गर्व हैं इन पर हमें, ये हैं हमारे.... 

वर्षों पुरातन, सभ्यता हमारी,
आठ सौ नहीं, हजारों सदियाँ गुजारी,
नाज मुझे, मेरी संस्कृति पर,
कुचलने चले तुम, मेरे सारे धरोहर,
पर हैं जिन्दा, ये आज भी,
लिए गोद में, तेरी हर निशानी, 
ज़ुल्म की, तेरी हर कहानी,
और संजोये, नैनों में सपने सुनहरे,
कितनी ही, काँटों से गुजरे....

यूँ ही रहेंगे डटे, हमेशा ये सामने तेरे,
भले ये पथ, कंटकों से गुजरे...

जलती राह में, बिखरे अंगारे,
जलते रहे, भटके ना ये कदम हमारे,
विपत्तियों में, अंधेरों ने घेरे,
हर कदम, नए उलझनों के फेरे,
हर युग, चुनौतियों से गुजरे,
मिट ना सकी, संस्कृति हमारी,
जिन्दा है, ये धरोहर हमारी,
गर्व हमको, हैं यही अभिमान मेरे,
हम हर, अभिशाप से उबरे....

हिमगिरी सा, है खड़ा ये सामने तेरे,
भले ये पथ, कंटकों से गुजरे...

मिटाने चले थे, वो जो सभ्यता,
वो लूटेरा! भला क्या हमको लूटता,
कुछ लुटेरे, रह गए हैं देश में,
ये उनके वंशज, बदले से वेश में,
उगलते हैं, अब भी आग वो,
छेड़ जाते हैं, अलग ही राग वो,
जरा गर, लेते है साँस वो,
इक चुनौती, वही अब सामने घेरे,
चल हम, रूप अपना धरें....

ये सिरमौर मेरा, ये अभिमान हैं हमारे,
गर्व हैं इन पर हमें, ये हैं हमारे....

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Thursday 26 September 2019

हुंकार

गूंज उठी थी ह्यूस्टन, थी अद्भुत सी गर्जन!
चुप-चुप सा, हतप्रभ था नेपथ्य!
क्षितिज के उस पार, विश्व के मंच पर, 
देश ने भरी थी, इक हुंकार?

सुनी थी मैंने, संस्कृति की धड़कनें,
जाना था मैंने, फड़कती है देश की भुजाएं,
गूँजी थी, हमारी इक गूंज से दिशाएँ,
एक व्यग्रता, ले रही थी सांसें!

फाख्ता थे, थर्राए दुश्मनों के होश,
इक भूचाल सा था, फूटा था मन का रोश,
संग ले रहा था, एक प्रण जन-जन,
विनाश करें हम, विश्व आतंक!

आतंक मुक्त हों, विश्व के फलक,
जागे मानवता, आत॔कियों के अन्तः तक,
लक्ष्य था एक, संग हों हम नभ तक,
संकल्प यही, पला अंत तक!

चाह यही, समुन्नत हों प्रगति पथ,
गतिमान रहे, विश्व जन-कल्याण के रथ,
अवसर हों, हाथों में हो इक मशाल,
रंग हो, नभ पे बिखरे गुलाल!

महा-शक्ति था, जैसे नत-मस्तक,
पहचानी थी उसने, नव-भारत की ताकत,
जाना, क्यूँ अग्रणी है विश्व में भारत!
आँखों से भाव, हुए थे व्यक्त!

गूंजी थी ह्यूस्टन, जागे थे सपने,
फलक पर अब, संस्कृति लगी थी उतरने,
हैरान था विश्व, हतप्रभ था नेपथ्य!
निरख कर, भारत का वैभव!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा

Wednesday 12 September 2018

यूँ भी होता

यूँ भी होता............

मन के क्षितिज पर,
गर कहीं चाँद खिला होता,
फिर अंधेरों से यहाँ,
मुझको न कोई गिला होता!

अनसुना ना करता,
मन मेरे मन की बातें सुनता,
बातें फिर कोई यहाँ,
मुझसे करता या न करता!

हो मन में जो लिखा,
गर कोई कभी पढ़ लेता,
लफ़्ज़ को यूँ शब्दों में,
ढ़लकर ना ही जलना होता!

करीब रहकर भी,
न फासला मिटा होता,
बेवजह गले मिल ले,
ऐसा न गर कोई मिला होता!

दिल तक पथ होता,
दूरी न ये तुम तक होता
थकता न ये पथिक,
मुश्किल भरा ना पथ होता!

गम से मन टूटता,
मन गैरों के गम में ही रोता,
भूले से भी गम कोई,
फिर दुश्मन को भी न देता!

यूँ भी होता..........

Wednesday 24 February 2016

मैं सीधी राह का राही

राह मुड़ती भी है कहीं, मुझको ये पता न था,
तंग राहों होकर ये दिल, आज तक गुजरा न था,
चाल कैसी चल रहे दोस्त, मुझको ये पता न था,
मैं सीधी राह का राही, ठोंकरों का मुझे गुमाँ न था।

एक साजिश पल रही थी, दोस्तो के दिल में कही,
दोस्त नायाब मिलते रहे, जो दुश्मनों से कम नही,
शह पे शह खाते रहे, दोस्तों की मेहरबानी से ही,
मैं सीधी राह का राही, पर दोस्तों पे अब यकीं नहीं।

टेढ़े मेढ़े इन रास्तों से, जिन्दगानी मेरी गुजरती रही,
दोस्तों से जख्म खाए, दुश्मनी किसी से की नहीं,
चाल मेरी एक सी, नफरत दिल में कभी पली नहीं,
मैं सीधी राह का राही, जीवन की मुल्यों पर मुझे यकीं।

Thursday 18 February 2016

तिरंगा शिरमौर भारत की शान

तिरंगे की शान मे बर्दाश्त न होगी गुस्ताखी हमें,
शिरमौर भारत की मान-सम्मान-गौरव सुरक्षा,
 लेनी अब अपनी हाथों में हमें!

वो दुश्मन गद्दार है जो कहता,
भारत मेरा देश नहीं,
मैं कहता सरजमीं-ए-भारत,
स्वाभिमान है मेरा,कोई खेल नहीं!

गद्दार हैं वो! जिनके दिल,
सरजमीं-ए-हिंदुस्तान में रहते नहीं,
युगों- युगों से जयचन्द जैसे,
गद्दारों की इस देश में चली नही।

शिरोधार्य शिरमौर देश का स्वाभिमान हमें,
अरमानों की बलि देकर,
इसकी रक्षा करनी होगी हमें, 
तिरंगे की शान मे बर्दाश्त न होगी गुस्ताखी हमें,
देश द्रोही अफजल जैसे गद्दारों के,
सर कलम करनी होगी हमें।

शिरमौर भारत की मान-सम्मान-गौरव सुरक्षा,
 अब लेनी अपनी हाथों में हमें!