Wednesday 16 January 2019

मन की उपज

राग-विहाग, अनुराग, वीतराग,
कल्पना, करुणा, भावना, व्यंजना,
आवेग, मनोवेग, उद्वेग, संवेग,
गैर नहीं, अपने हैं, मन के ही ये उपजे हैं!

भावप्रवण, होता है जब भी मन,
सिक्त हो उठते है, तब ये अन्तःकरण, 
कराहता है मन, फूट पड़ता है कोई घाव,
अन्तः उभरता है, इक प्रतिश्राव,
जागृत हो उठते है, मन के सुसुप्त प्रदेश,
फूट पड़ती है, सिक्त सी जमीं....

ये प्रतिश्राव, गैर नहीं, मन के ही उपजे हैं!

अनियंत्रित, हो उठती हैं इंद्रियाँ,
अवरुद्ध, हो जाती है मन की गलियाँ,
तड़पाता है मन, अकुलाता है ये ठहराव,
रुक-रुक, चलता है नंगे ही पाँव,
उबल पड़ते हैं कभी, मन के भावावेश,
सिसकती है, सिक्त सी जमी....

ये भावावेश, गैर नहीं, मन के ही उपजे हैं!

अनुस्यूत हैं, इन भावों से मन,
फलीभूत हैं, इन उच्छ्वासों से मन,
बांधता है मन, अन्तहीन सा ये फैलाव,
घनेरी सी, जब करती है ये छाँव,
मृदुल एहसासों का, मन देता है संदेश,
विहँस पड़ती है, सिक्त सी जमीं.....

ये एहसास, गैर नहीं, मन के ही उपजे हैं!

तृष्णा, घृणा, करुणा, वितृष्णा,
अनुताप, संताप, आलाप, विलाप,
विद्वेष, क्लेश, लगाव, दुराव,
गैर नहीं, अपने हैं, मन के ही ये उपजे हैं!

8 comments:


  1. तृष्णा, घृणा, करुणा, वितृष्णा,
    अनुताप, संताप, आलाप, विलाप,
    विद्वेष, क्लेश, लगाव, दुराव,
    गैर नहीं, अपने हैं, मन के ही ये उपजे हैं! बहुत सुंदर रचना 👌

    ReplyDelete
  2. आदरणीया अनुराधा जी, हृदयतल से आभार हूँ आपका।

    ReplyDelete
  3. राग-विहाग, अनुराग, वीतराग,
    कल्पना, करुणा, भावना, व्यंजना,
    आवेग, मनोवेग, उद्वेग, संवेग,
    गैर नहीं, अपने हैं, मन के ही ये उपजे हैं!
    मन के भावों का विस्तृत चित्रण,आपकी लेखनी को नमन, बेहतरीन रचना

    ReplyDelete
  4. बेहतरीन सृजन आदरणीय
    सादर

    ReplyDelete
  5. Replies
    1. आदरणीया विश्वमोहन जी, हौसला अफजाई के लिए शुक्रिया आभार ।

      Delete