चल झूठी! फिर झूठ मुझे ना कहना...
सपन! सलोना सा है वो मेरा,
उन सपनों में, रमता है ये मन मेरा,
आओ देखो, तुम भी ये सपना,
झूठ या सच, मुझको फिर कहना!
चल झूठी! फिर झूठ मुझे ना कहना...
सागर तट सी, उनकी पलकें,
मदिरा हरपल, नैनों से हों छलके,
पास बुलाए, वो चल-चल के,
ना होश उड़ा दे, तो फिर कहना!
चल झूठी! फिर झूठ मुझे ना कहना...
भूल-भुलैय्या, हैं उनकी आँखें,
जाना-पहचाना, वो पथ बिसरा दे,
वो स्वागत में, दो बाहें फैला दे,
मोहित ना कर दे, तो फिर कहना!
चल झूठी! फिर झूठ मुझे ना कहना...
रूप सुनहरा, जैसे हो गहना,
बरसा हो सावन, जैसे इस अंगना,
नित चाहे मन, उनमें ही खोना,
सपन! सलोना सा है वो मेरा,
उन सपनों में, रमता है ये मन मेरा,
आओ देखो, तुम भी ये सपना,
झूठ या सच, मुझको फिर कहना!
चल झूठी! फिर झूठ मुझे ना कहना...
सागर तट सी, उनकी पलकें,
मदिरा हरपल, नैनों से हों छलके,
पास बुलाए, वो चल-चल के,
ना होश उड़ा दे, तो फिर कहना!
चल झूठी! फिर झूठ मुझे ना कहना...
भूल-भुलैय्या, हैं उनकी आँखें,
जाना-पहचाना, वो पथ बिसरा दे,
वो स्वागत में, दो बाहें फैला दे,
मोहित ना कर दे, तो फिर कहना!
चल झूठी! फिर झूठ मुझे ना कहना...
रूप सुनहरा, जैसे हो गहना,
बरसा हो सावन, जैसे इस अंगना,
नित चाहे मन, उनमें ही खोना,
सुंदर ना हो सपना, तो फिर कहना!
चल झूठी! फिर झूठ मुझे ना कहना...
चल झूठी! फिर झूठ मुझे ना कहना...
बेहतरीन रचना आदरणीय
ReplyDeleteआदरणीया अनुराधा जी, हृदयतल से आभार हूँ आपका।
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