Thursday 9 May 2019

वही पगडंडियाँ

है ये वही पगडंडियाँ ....
चल पड़े थे जहाँ, संग तेरे मेरे कदम,
ठहरी है वहीं, वो ठंढ़ी सी पवन,
और बिखरे हैं वहीं, टूटे से कई ख्वाब भी,
चलो मिल आएं, उन ख्वाबों से हम,
उन्ही पगडंडियों पर!

है ये वही पगडंडियाँ ....
हवाओं नें बिखराए, तेरे आँचल जहाँ,
सूना सा है, आजकल वो जहां,
रह रही हैं वहाँ, कुछ चुभन और तन्हाईयाँ,
चलो मिटा आएं, उनकी तन्हाईयाँ,
उन्हीं पगडंडियों पर!

है ये वही पगडंडियाँ ....
तोड़ डाले जहाँ, मन के सारे भरम,
हुए थे जुदा, तुम और हम,
और दिल ने सहे, वक्त के कितने सितम,
चलो जोड़ आएं, हम वो भरम,
उन्हीं पगडंडियों पर!

है ये वही पगडंडियाँ ....
जहाँ वादों का था, इक नया संस्करण,
हुआ ख्वाबों का, पुनर्आगमण,
शायद फिर बने, नए भ्रम के समीकरण,
चलो फिर से करें, नए वादे हम,
उन्हीं पगडंडियों पर!

(Reincarnation of "वादों का नया संस्करण")
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा

22 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "साप्ताहिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 11 मई 2019 को साझा की गई है......... मुखरित मौन पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (10-05-2019) को "कुछ सीख लेना चाहिए" (चर्चा अंक-3331) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. चल पड़े थे जहाँ, संग तेरे मेरे कदम,
    ठहरी है वहीं, वो ठंढ़ी सी पवन,
    और बिखरे हैं वहीं, टूटे से कई ख्वाब भी,
    चलो मिल आएं, उन ख्वाबों से हम,
    बहुत ही खूबसूरत ख्वाबों से सजी लाजवाब रचना...
    वाह!!!

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    1. प्रेरक शब्दों हेतु शुक्रिया, हृदयतल से आभार आदरणीया सुधा देवरानी जी।

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  4. ये वही पगडंडियाँ ....
    हवाओं नें बिखराए, तेरे आँचल जहाँ,
    सूना सा है, आजकल वो जहां,
    रह रही हैं वहाँ, कुछ चुभन और तन्हाईयाँ,
    चलो मिटा आएं, उनकी तन्हाईयाँ,
    उन्हीं पगडंडियों पर!....बहुत ही सुन्दर सृजन आदरणीय
    सादर

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    1. प्रेरक शब्दों हेतु शुक्रिया हृदयतल से आभार आदरणीया अनीता जी।

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  5. बेहतरीन रचना ,हमेशा की तरह , सादर नमन

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    1. उत्साहवर्धन हेतु सदैव आभारी हूँ आदरणीया कामिनी जी

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  6. आवश्यक सूचना :

    सभी गणमान्य पाठकों एवं रचनाकारों को सूचित करते हुए हमें अपार हर्ष का अनुभव हो रहा है कि अक्षय गौरव ई -पत्रिका जनवरी -मार्च अंक का प्रकाशन हो चुका है। कृपया पत्रिका को डाउनलोड करने हेतु नीचे दिए गए लिंक पर जायें और अधिक से अधिक पाठकों तक पहुँचाने हेतु लिंक शेयर करें ! सादर https://www.akshayagaurav.in/2019/05/january-march-2019.html

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  7. बहुत सुंदर कविता। मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
    iwillrocknow.com

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  8. वाह!!पुरुषोत्तम जी ,खूबसूरत सृजन।

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    1. आदरणीया शुभा जी, हौसला अफजाई के लिए शुक्रिया आभार ।

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  9. वाह बेहतरीन रचना आपकी लेखनी का जबाव
    नहीं

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    1. आदरणीया अभिलाषा जी, हौसला अफजाई के लिए शुक्रिया आभार ।

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  10. दिल में था तेरा बसेरा,
    तू कभी बिछड़ा नहीं था.
    आज फिर से मिल के हम
    चल आशियाना इक बनाएं.

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    1. आदरणीय गोपेश जी, आपने अपनी टिप्पणी से रचना में जान डाल दी है। आपके आशीष के लिए आभारी हूँ ।

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  11. शानदार धुमिल होती पग चापों को चल फिर नये निशान दें।
    अप्रतिम रचना ।

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    1. नई मोतियों से पिरो दी है आपने इस रचना को आदरणीया कुसुम जी। बहुत-बहुत धन्यवाद । आभार।

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