Saturday 2 April 2022

पतवार

ठहरे धार में, पतवार क्या करे?
ठहर, ऐ नाव मेरे,
वक्त की पतवार ही, इक धार लाएगी,
बहा ले जाएगी, तुमको,
आंहें क्यूँ भरे!

ठहरे धार में, पतवार क्या करे?

अभी, बहते पलों में, समाया एक छल है,
ज्यूं, नदी में, ठहरा हुआ जल है,
बांध ले, सपने,
यूं, ठहरता पल कहां, रोके किसी के!
कहीं, तेरे संग ये पल,
छल ना करे!

ठहरे धार में, पतवार क्या करे?

पहलू अलग ही, वक्त के बहते भंवर का,
बहा ले जाए, जाने किस दिशा,
है जिद्दी, बड़ा, 
रोड़ें राह के, कभी थाम लेती हैं बाहें,
वास्ता, उन पत्थरों से,
यूं कौन तोड़े!

ठहरे धार में, पतवार क्या करे?

डोल जाए ना, कहीं, अटल विश्वास तेरा!
तू सोचता क्यूं, संशय में घिरा?
ले, पतवार ले,
धीर रख, मन के सारे संशय वार ले,
पार जाएगी, ये नैय्या,
मन क्यूं डरे!

ठहरे धार में, पतवार क्या करे?
ठहर, ऐ नाव मेरे,
वक्त की पतवार ही, इक धार लाएगी,
बहा ले जाएगी, तुमको,
आंहें क्यूँ भरे!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

12 comments:

  1. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (3-4-22) को "सॄष्टि रचना प्रारंभ दिवस चैत्र शुक्ल प्रतिपदा".(चर्चा अंक-4389)पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
    --
    कामिनी सिन्हा

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  2. बहुत ख़ूब !
    हिम्मत वाले की पतवार तो नदी का रुख तक मोड़ सकती है.

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  3. डोल जाए ना, कहीं, अटल विश्वास तेरा!
    तू सोचता क्यूं, संशय में घिरा?
    ले, पतवार ले,
    धीर रख, मन के सारे संशय वार ले,
    पार जाएगी, ये नैय्या,
    मन क्यूं डरे!
    वाह!!!
    सुन्दर संदेशप्रद लाजवाब सृजन।

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  4. वक़्त तय करता है रास्ता
    नाव का पतवार से वास्ता

    क्या कहना !

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  5. है जिद्दी बड़ा.. क्या बात है!!
    समय की धार और शब्दों के चप्पू..बहुत सुंदर।

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