ठहरे धार में, पतवार क्या करे?
ठहर, ऐ नाव मेरे,
वक्त की पतवार ही, इक धार लाएगी,
बहा ले जाएगी, तुमको,
आंहें क्यूँ भरे!
ठहरे धार में, पतवार क्या करे?
अभी, बहते पलों में, समाया एक छल है,
ज्यूं, नदी में, ठहरा हुआ जल है,
बांध ले, सपने,
यूं, ठहरता पल कहां, रोके किसी के!
कहीं, तेरे संग ये पल,
छल ना करे!
ठहरे धार में, पतवार क्या करे?
पहलू अलग ही, वक्त के बहते भंवर का,
बहा ले जाए, जाने किस दिशा,
है जिद्दी, बड़ा,
रोड़ें राह के, कभी थाम लेती हैं बाहें,
वास्ता, उन पत्थरों से,
यूं कौन तोड़े!
ठहरे धार में, पतवार क्या करे?
डोल जाए ना, कहीं, अटल विश्वास तेरा!
तू सोचता क्यूं, संशय में घिरा?
ले, पतवार ले,
धीर रख, मन के सारे संशय वार ले,
पार जाएगी, ये नैय्या,
मन क्यूं डरे!
ठहरे धार में, पतवार क्या करे?
ठहर, ऐ नाव मेरे,
वक्त की पतवार ही, इक धार लाएगी,
बहा ले जाएगी, तुमको,
आंहें क्यूँ भरे!
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
सादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (3-4-22) को "सॄष्टि रचना प्रारंभ दिवस चैत्र शुक्ल प्रतिपदा".(चर्चा अंक-4389)पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
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कामिनी सिन्हा
आभार आदरणीया।।।
Deleteबहुत ख़ूब !
ReplyDeleteहिम्मत वाले की पतवार तो नदी का रुख तक मोड़ सकती है.
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय
Deleteडोल जाए ना, कहीं, अटल विश्वास तेरा!
ReplyDeleteतू सोचता क्यूं, संशय में घिरा?
ले, पतवार ले,
धीर रख, मन के सारे संशय वार ले,
पार जाएगी, ये नैय्या,
मन क्यूं डरे!
वाह!!!
सुन्दर संदेशप्रद लाजवाब सृजन।
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया
Deleteवक़्त तय करता है रास्ता
ReplyDeleteनाव का पतवार से वास्ता
क्या कहना !
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया
Deleteहै जिद्दी बड़ा.. क्या बात है!!
ReplyDeleteसमय की धार और शब्दों के चप्पू..बहुत सुंदर।
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया
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