उस सूनेपन में...
रात ढ़ले, ढ़ल जाऐंगे, जब वो तारे,
होंगे रिक्त बड़े, आकाश!
प्रतीक्षित होगा, तब दिन का ढ़लना,
अपेक्षित होगा, तम से मिलना,
दिन के सायों में, फैलाए खाली दामन,
रहा बिखरा सा आकाश!
टूटे ना टूटे, इस, अन्त:मन के बंधन,
छूटे ना छूटे, लागी जो लगन,
कंपित जीवन के पल, रिक्त लगे क्षण,
लगे उलझा सा आकाश!
रिक्त क्षणों में, संशय सा ये जीवन,
उन दिनों में, सूना सा आंगन,
लगे गीत बेगाना, हर संगीत अंजाना,
इक मूरत सा, आकाश!
उस सूनेपन में...
दिन ढ़ले, कहीं ढ़ल जाऐंगे, नजारे,
मुखर हो उठेंगे आकाश!
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
आपकी लिखी रचना 30 मई 2022 को
ReplyDeleteपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया संगीता जी
Deleteवाह।🌻
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद
Deleteबहुत सुन्दर !
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद
Deleteप्रतीक्षित होगा, तब दिन का ढ़लना,
ReplyDeleteअपेक्षित होगा, तम से मिलना,
दिन के सायों में, फैलाए खाली दामन,
रहा बिखरा सा आकाश!
प्रतीक्षा दिन ढ़लने की अपने तम से मिलने की...
वाह!!!
बहुत सुन्दर।
आदरणीया सुधा देवरानी जी, बहुत बहुत धन्यवाद
Deleteबहुत सुंदर भाव,सराहनीय अभिव्यक्ति सर।
ReplyDeleteसादर।
आदरणीया श्वेता जी, बहुत बहुत धन्यवाद
Deleteबहुत बहुत सुन्दर
ReplyDeleteआदरणीय आलोक जी, बहुत बहुत धन्यवाद
Deleteमन का आकाश कभी बिखरा सा, कभी प्रतीक्षारत, कभी बेगाना , कभी उलझा सा... सुन्दर अभिव्यक्ति !!
ReplyDeleteआदरणीया ऋता जी, बहुत बहुत धन्यवाद
Deleteबहुत सुंदर भावों से सजी अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteआदरणीया जिज्ञासा जी, बहुत बहुत धन्यवाद
Deleteनमस्कार बहुत खूब लिखा
ReplyDeleteबडे दिन हो गये
आप का आगमन नही हुआ ब्लोग पर
https://sanjaybhaskar.blogspot.com
आदरणीय संजय भास्कर जी, बहुत बहुत धन्यवाद
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