Saturday, 28 May 2022

रिक्त


उस सूनेपन में...
रात ढ़ले, ढ़ल जाऐंगे, जब वो तारे,
होंगे रिक्त बड़े, आकाश!

प्रतीक्षित होगा, तब दिन का ढ़लना,
अपेक्षित होगा, तम से मिलना,
दिन के सायों में, फैलाए खाली दामन,
‌रहा बिखरा सा आकाश!

टूटे ना टूटे, इस, अन्त:मन के बंधन,
छूटे ना छूटे, लागी जो लगन,
कंपित जीवन के पल, रिक्त लगे क्षण,
लगे उलझा सा आकाश!

रिक्त क्षणों में, संशय सा ये जीवन,
उन दिनों में, सूना सा आंगन,
लगे गीत बेगाना, हर संगीत अंजाना,
इक मूरत सा, आकाश!

उस सूनेपन में...
दिन ढ़ले, कहीं ढ़ल जाऐंगे, नजारे,
मुखर हो उठेंगे आकाश!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)

18 comments:

  1. आपकी लिखी रचना 30 मई 2022 को
    पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    संगीता स्वरूप

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया संगीता जी

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  2. प्रतीक्षित होगा, तब दिन का ढ़लना,
    अपेक्षित होगा, तम से मिलना,
    दिन के सायों में, फैलाए खाली दामन,
    ‌रहा बिखरा सा आकाश!
    प्रतीक्षा दिन ढ़लने की अपने तम से मिलने की...
    वाह!!!
    बहुत सुन्दर।

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    1. आदरणीया सुधा देवरानी जी, बहुत बहुत धन्यवाद

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  3. बहुत सुंदर भाव,सराहनीय अभिव्यक्ति सर।
    सादर।

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    1. आदरणीया श्वेता जी, बहुत बहुत धन्यवाद

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  4. Replies
    1. आदरणीय आलोक जी, बहुत बहुत धन्यवाद

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  5. मन का आकाश कभी बिखरा सा, कभी प्रतीक्षारत, कभी बेगाना , कभी उलझा सा... सुन्दर अभिव्यक्ति !!

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    1. आदरणीया ऋता जी, बहुत बहुत धन्यवाद

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  6. बहुत सुंदर भावों से सजी अभिव्यक्ति।

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    1. आदरणीया जिज्ञासा जी, बहुत बहुत धन्यवाद

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  7. नमस्कार बहुत खूब लिखा
    बडे दिन हो गये
    आप का आगमन नही हुआ ब्लोग पर
    https://sanjaybhaskar.blogspot.com

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    1. आदरणीय संजय भास्कर जी, बहुत बहुत धन्यवाद

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