Saturday 23 July 2022

अनमनस्क तरंगें


ना गिन पाऊँ, अनमनस्क, मन की तरंगें,
कोरे, ये कागज सारे कौन रंगे!

बीते कई दिन, बस यूँ ही, अनमने से,
अर्ध-स्वप्न सी, बीती रातें कई,
मलता रहा नैन, बस यूँ ही, जागा-जागा,
दूर, जीवन कहीं, रंगों से भागा,
फीकी सी, सब उमंगें!

ना गिन पाऊँ, अनमनस्क, मन की तरंगें,
कोरे, ये कागज सारे कौन रंगे!

बही प्रतिकूल, यूँ ही, ये चंचल हवाएँ,
छू ले, कभी, यूँ नाहक जगाए,
अनमनस्क लग रहे, नदी के ये किनारे,
दूर, बहते रहे, अनवरत वो धारे,
बहा गई, सारी उमंगे!

ना गिन पाऊँ, अनमनस्क, मन की तरंगें,
कोरे, ये कागज सारे कौन रंगे!

शायद, बहने लगे, पवन हौले-हौले,
मन को मेरे, कोई यूँ ही छू ले!
शून्य क्यूँ है इतना, कोई आए टटोले!
दूर, क्षितिज पर, फिर से बिखेरे,
वो ही, सतरंगी उमंगे!

ना गिन पाऊँ, अनमनस्क, मन की तरंगें,
कोरे, ये कागज सारे कौन रंगे!

16 comments:

  1. अतिसुंदर रचना

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  2. अतिसुंदर रचना श्रीमान जी के द्वारा । जीबन के मन मे तरंग भरने वाली रचना ।

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  3. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 24 जुलाई 2022 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  4. निरव मन की व्याकुलता को परिलक्षित करती बहुत ही सुंदर रचना 🙏

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  5. बीते कई दिन, बस यूँ ही, अनमने से,
    अर्ध-स्वप्न सी, बीती रातें कई,
    मलता रहा नैन, बस यूँ ही, जागा-जागा,
    दूर, जीवन कहीं, रंगों से भागा
    फीकी सी, सब उमंगें!
    बहुत सुंदर, भावनाओं में बहती हुई पंक्तियां

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  6. शायद, बहने लगे, पवन हौले-हौले,
    मन को मेरे, कोई यूँ ही छू ले!
    शून्य क्यूँ है इतना, कोई आए टटोले!
    दूर, क्षितिज पर, फिर से बिखेरे,
    वो ही, सतरंगी उमंगे!
    ..भावपूर्ण अहसास की सुंदर अभिव्यक्ति ।

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