Saturday, 2 July 2022

वार्तालाप


अनवरत कह रहे थे हम, चुप सुन रहे थे आप,
इक तरफा, कुछ यूं चला वार्तालाप!

शायद, पवन सहारे, बह चले थे, शब्द सारे, 
हवाओं संग, तैरती, मेरी तरंगें,
हो दिशाहीन, उड़ चली थी, कहीं,
अर्थहीन, सारे आलाप,
इक तरफा, कुछ यूं चला वार्तालाप!

ठहरकर, एक धारा, ढूंढ़ती थी, वो किनारा,
दो लफ्जों का, यह खेल सारा,
भला, खेलता कोई, कैसे अकेला,
अधूरा सा, ये मिलाप,
इक तरफा, कुछ यूं चला वार्तालाप!

लौट आईं, ओर मेरी, गूंज, शब्दों के मेरे ही,
टकराकर, उन, खामोशियों से,
बड़े ही सिक्त थे, पर भावरिक्त थे,
सहते रहे, वो संताप,
इक तरफा, कुछ यूं चला वार्तालाप!

अनवरत कह रहे थे हम, चुप सुन रहे थे आप,
इक तरफा, कुछ यूं चला वार्तालाप!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)

14 comments:

  1. लौट आईं, ओर मेरी, गूंज, शब्दों के मेरे ही,
    टकराकर, उन, खामोशियों से,
    बड़े ही सिक्त थे, पर भावरिक्त थे,
    सहते रहे, वो संताप,
    इक तरफा, कुछ यूं चला वार्तालाप... उम्दा रचना

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया शकुन्तला जी

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  2. एकालाप को बखूबी लिखा है ।

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया संगीता जी

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  3. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 03 जुलाई 2022 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया ज्योति जी

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  5. बहुत खूबसूरत रचना

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  6. इक तरफा वार्तालाप में भी इंसान कहाँ अकेला होता है
    बहुत खूब !

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया कविता जी

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