अनवरत कह रहे थे हम, चुप सुन रहे थे आप,
इक तरफा, कुछ यूं चला वार्तालाप!
शायद, पवन सहारे, बह चले थे, शब्द सारे,
हवाओं संग, तैरती, मेरी तरंगें,
हो दिशाहीन, उड़ चली थी, कहीं,
अर्थहीन, सारे आलाप,
इक तरफा, कुछ यूं चला वार्तालाप!
ठहरकर, एक धारा, ढूंढ़ती थी, वो किनारा,
दो लफ्जों का, यह खेल सारा,
भला, खेलता कोई, कैसे अकेला,
अधूरा सा, ये मिलाप,
इक तरफा, कुछ यूं चला वार्तालाप!
लौट आईं, ओर मेरी, गूंज, शब्दों के मेरे ही,
टकराकर, उन, खामोशियों से,
बड़े ही सिक्त थे, पर भावरिक्त थे,
सहते रहे, वो संताप,
इक तरफा, कुछ यूं चला वार्तालाप!
अनवरत कह रहे थे हम, चुप सुन रहे थे आप,
इक तरफा, कुछ यूं चला वार्तालाप!
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
लौट आईं, ओर मेरी, गूंज, शब्दों के मेरे ही,
ReplyDeleteटकराकर, उन, खामोशियों से,
बड़े ही सिक्त थे, पर भावरिक्त थे,
सहते रहे, वो संताप,
इक तरफा, कुछ यूं चला वार्तालाप... उम्दा रचना
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया शकुन्तला जी
Deleteएकालाप को बखूबी लिखा है ।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया संगीता जी
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 03 जुलाई 2022 को साझा की गयी है....
ReplyDeleteपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया दी...
DeleteBahut khub
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद
ReplyDeleteउम्दा रचना।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया ज्योति जी
Deleteबहुत खूबसूरत रचना
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीया
Deleteइक तरफा वार्तालाप में भी इंसान कहाँ अकेला होता है
ReplyDeleteबहुत खूब !
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया कविता जी
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