नयन-नयन, कितने सूने क्षण!
निखरते थे कल, नैनों में काजल,
प्रवाह नयन के, कब रुकते थे कल-कल,
हँसी, विषाद के वो पल,
अब कितने, नासाद हो चले,
सूख चले, नैनों से आँसू,
रूठ चले, ये क्षण!
उपवन-उपवन, सूखे कितने ये घन,
नयन-नयन, कितने सूने क्षण!
इच्छाओं के घेरों में, निस्पृह मन,
ज्यूँ, निस्संग, कोई तुरंग, भागे यूँ सरपट,
सूने से, उन सपनों संग,
विवश, बंद-बंद अपने आंगन,
जागी सी, इच्छाओं संग,
कैद हुए, ये क्षण!
निस्पृह, आंगन-आंगन कामुक मन,
नयन-नयन, कितने सूने क्षण!
इच्छाएं, छलक उठती थी जिनसे,
कुछ उदास क्षण, अब झांकते हैं उनसे,
सूने हैं, नैनों के दो तट,
विरान, इच्छाओं के ये पनघट,
अब क्या, रोकेंगी राहें,
निस्पृह, ये क्षण!
नयन-नयन, कितने सूने क्षण!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
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इच्छाओं के घेरों में, निस्पृह मन,
ReplyDeleteज्यूँ, निस्संग, कोई तुरंग, भागे यूँ सरपट,
सूने से, उन सपनों संग,
विवश, बंद-बंद अपने आंगन,
जागी सी, इच्छाओं संग,
कैद हुए, ये क्षण....सुंदर भावपूर्ण रचना
विनम्र आभार आदरणीया शकुन्तला जी।
Deleteसुंदर सृजन।
ReplyDeleteविनम्र आभार आदरणीय शिवम जी।
Deleteवाह! बहुत सुंदर,भावपूर्ण पंक्तियाँ 👌
ReplyDeleteसादर प्रणाम 🙏
बहुत-बहुत धन्यवाद आँचल जी।
Deleteवाह!दिल के तार को झंकृत करती सुंदर पंक्तियाँ!!!
ReplyDeleteविनम्र आभार आदरणीय विश्वमोहन जी।
Deleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 29 -04-2021 को चर्चा – 4,051 में दिया गया है।
ReplyDeleteआपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
धन्यवाद सहित
दिलबागसिंह विर्क
विनम्र आभार आदरणीय विर्क जी।
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" ( 3012...कहा होगा किसी ने ऐसा भी दौर आएगा... ) पर गुरुवार 29 अप्रैल 2021 को साझा की गई है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteविनम्र आभार आदरणीय रवीन्द्र जी।
Deleteअसहाय होना इस काल की त्रासदी
ReplyDeleteत्रासदी का सार्थक चित्रण
विनम्र आभार आदरणीया विभा जी।
Delete
ReplyDeleteइच्छाओं के घेरों में, निस्पृह मन,
ज्यूँ, निस्संग, कोई तुरंग, भागे यूँ सरपट,
सूने से, उन सपनों संग,
विवश, बंद-बंद अपने आंगन,
जागी सी, इच्छाओं संग,
कैद हुए, ये क्षण!...आज के परिदृष्य पर हर दृष्टिकोण से सटीक बैठती लाजवाब रचना ..
विनम्र आभार आदरणीया जिज्ञासा जी।
Deleteइच्छाएं, छलक उठती थी जिनसे,
ReplyDeleteकुछ उदास क्षण, अब झांकते हैं उनसे,
सूने हैं, नैनों के दो तट,
विरान, इच्छाओं के ये पनघट,
अब क्या, रोकेंगी राहें,
निस्पृह, ये क्षण!---गहरी पंक्तियां... और गहरी रचना।
विनम्र आभार आदरणीय संदीप जी।
Deleteबहुत खूबसूरत लाजवाब रचना
ReplyDeleteविनम्र आभार आदरणीया प्रीति जी।
Deleteकिस भाव से उपजे ये शब्द नहीं कह सकती लेकिन कुछ उदास से लम्हे जिन्हें आपने अपनी लेखनी से कैद कर लिया । भावपूर्ण अभिव्यक्ति
ReplyDeleteविनम्र आभार आदरणीया संगीता जी।
Deleteआजकल की परिस्थितियाँ, विवश कर जाती हैं स्वतः ही। आहत होता हूँ ... शेष ..... क्या कहें,,,,,
वाह!मुग्ध करता काव्य सृजन।
ReplyDeleteबहुत सुंदर ।
विनम्र आभार आदरणीया कुसुम जी।
ReplyDeleteThanks Dear Manish Ji .
ReplyDeletePlease remain associated with me....
Thanks for sharing this useful information,regards. Mod Apk
ReplyDeleteThanks for sharing your thoughts. I appreciate your efforts, and I will await your subsequent write-ups. Thanks once again.Hindi Boom
ReplyDeleteThank you so much for sharing this with me. I enjoyed reading it. Please keep sharing more such blog posts. Thank you.Insider League
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