Sunday 4 April 2021

सपना न रहे

जरा, इस मन को, सम्हालूँ,
न जाओ, ठहर जाओ, यहीं क्षण भर!

कुछ और नहीं, बस, इक अनकही,
मन में ही कहीं, बाँकी सी रही,
किसी क्षण, कह डालूँ,
दो पहर, ठहर जाओ, यहीं क्षण भर!

कैसे कहते हैं, भला, मन की बातें,
पहले मन को, जरा समझाते,
यूँ ही, न बिखर जाऊँ, 
बतलाओ, रुक जाओ, यहीं क्षण भर!

सपना ना रहे, ये सपनों का शहर,
टूटे न कहीं, शीशे का ये घर,
ठहर जरा, कह डालूँ,
न जाओ, रुक जाओ, यहीं क्षण भर!

इक मूरत, अधूरी, जरा अब तक,
होगी पूरी, भला, कब तक,
आ रंगों में, इसे ढ़ालूँ,
पल दो पल, आओ, यहीं क्षण भर!

जरा, इस मन को, सम्हालूँ,
दो पहर, ठहर जाओ, यहीं क्षण भर!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)

18 comments:

  1. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार ( 05-04 -2021 ) को 'गिरना ज़रूरी नहीं,सोचें सभी' (चर्चा अंक-4027) पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय रवीन्द्र जी।

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    1. प्रेरक टिप्पणी हेतु विनम्र आभार, बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय मयंक जी।

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

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    1. प्रेरक टिप्पणी हेतु विनम्र आभार, बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय ओंकार जी।

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  4. बहुत सुदर रचना स‍िन्हा साहब, इक मूरत, अधूरी, जरा अब तक,
    होगी पूरी, भला, कब तक,
    आ रंगों में, इसे ढ़ालूँ,
    पल दो पल, आओ, यहीं क्षण भर!..वाह

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    1. सुंदर टिप्पणी हेतु विनम्र आभार, बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय अलकनंदा जी।

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  5. कैसे कहते हैं, भला, मन की बातें,
    पहले मन को, जरा समझाते,
    यूँ ही, न बिखर जाऊँ,
    बतलाओ, रुक जाओ, यहीं क्षण भर!
    बहुत सुंदर रचना बधाई हो

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    1. सुंदर टिप्पणी हेतु विनम्र आभार, बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया ज्योति जी।

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  6. बहुत सुंदर कविता रची आपने पुरुषोत्तम जी । सागर से भी गहरे भावों से भरी ।

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    1. सुंदर टिप्पणी हेतु विनम्र आभार, बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय माथुर जी।

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  7. सच में दो पल ठहर जाए यहीं । आह्लादकारी अभिव्यक्ति ।

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    1. हृदयस्पर्शी भात्मक टिप्पणी हेतु विनम्र आभार, बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया अमृता तन्मय जी।

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  8. सुंदर श्रृंगार भाव सुंदर शब्द चयन हृदय स्पर्शी रचना।
    बहुत बहुत बधाई।

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    1. म्र आभार, बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया कुसुम जी।

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  9. इक मूरत, अधूरी, जरा अब तक,
    होगी पूरी, भला, कब तक,
    आ रंगों में, इसे ढ़ालूँ,
    पल दो पल, आओ, यहीं क्षण भर!
    वाह ! बहुत ही भावपूर्ण आग्रह और मनुहार
    कवि की इतनी प्यारी मनुहार सुनकर किसके कदम ना थम जायेंगे |

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    1. विनम्र आभार, बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया रेणु जी।

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