Sunday, 14 January 2024

कुहासे

थम जरा, ऐ तप्त सांसें,
सर्द हुई हवा,
हर ओर, जम रही ये दिशा,
चल रही, सर्द लहर,
जर्द ये कुहासे!

सफर, अब राहतों का,
तू थम जरा,
पल भर को, तू जम जरा,
ले आया, नव-विहान,
जर्द ये कुहासे!

जम चुका, ये आंगना,
ज्यूं भर रहा,
नव-संकल्प, नव-कल्पना,
रुख ही, वे बदल गईं,
जर्द से कुहासे!

लक्ष्य है, जरा धूमिल,
धूंध है भरा,
बस खुद पर, रख यकीन,
कुछ असर दिखाएगी,
जर्द ये कुहासे!

थम जरा, ऐ तप्त सांसें,
सर्द अब हवा,
सर्द हो चली, गर्म वो दिशा,
नव प्रवाह, भर गई, 
जर्द ये कुहासे!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

5 comments:

  1. कुहासे... बेहतरीन अभिव्यक्ति सर।
    सादर।
    -----
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार १६ जनवरी २०२४ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  2. जम चुका, ये आंगना,
    ज्यूं भर रहा,
    नव-संकल्प, नव-कल्पना,
    रुख ही, वे बदल गईं,
    जर्द से कुहासे!
    बेहतरीन रचना

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  3. जम चुका, ये आंगना,
    ज्यूं भर रहा,
    नव-संकल्प, नव-कल्पना,
    रुख ही, वे बदल गईं,
    जर्द से कुहासे!
    बेहतरीन रचना

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  4. वाह! पुरुषोत्तम जी ,बहुत खूब!

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