अब जो हुआ, अब न वो फिर होगा....
इन संवेदनाओं को अब, सहेजना होगा,
ढ़ाल कर, कहीं चेतनाओं में,
मूर्त कल्पनाओं में,
भरकर अल्पनाओं में, रखना होगा!
अब जो हुआ, अब न वो फिर होगा....
पल जो हुए कल, रुलाएंगी वो ही कल,
जागते वो ही पल, होंगे मूर्त,
जगाएंगे, व्यर्थ में,
अब जो हैं ये पल, उन्हें सीना होगा!
अब जो हुआ, अब न वो फिर होगा....
पर बिंब हो उठी हैं, समस्त असंवेदना,
सुसुप्त सी हो चली, चेतना,
सहेजे, कौन भला,
अब जो ढल रहा, ये पल न रुकेगा!
अब जो हुआ, अब न वो फिर होगा....
बिखेरेंगे न ये रंग, वेदनाओं के आंगन,
दोहराएंगे, न ये गीत कोई,
अनसुना, सब कहा,
लौट कर, फिर न अब दोहराएगा!
अब जो हुआ, अब न वो फिर होगा....
No comments:
Post a Comment