चुप जो हो गए, तुम...
खो गए रास्ते, शब्द वो अनकहे हो गए गुम!
रही अधूरी ही, बातें कई,
पलकें खुली, गुजरी न रातें कई,
मन ही रही, मन की कही,
बुनकर, एक खामोशी,
छोड़ गए तुम!
चुप जो हो गए, तुम...
खो गए रास्ते, शब्द वो अनकहे हो गए गुम!
पंछी, करे क्या कलरव!
तन्हा, उन शब्दों को कौन दे रव!
ढ़ले अब, एकाकी ये शब,
चुनकर, रास्ते अलग,
गुम हुए तुम!
चुप जो हो गए, तुम...
खो गए रास्ते, शब्द वो अनकहे हो गए गुम!
शायद, मिल भी जाओ!
हैं जो बातें अधूरी, फिर सुनाओ!
फिर, ये चूड़ियाँ खनकाओ,
यहीं, रख कर जिन्हें,
भूल गए तुम!
चुप जो हो गए, तुम...
खो गए रास्ते, शब्द वो अनकहे हो गए गुम!
बहुत सुंदर एवं भावपूर्ण
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया
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ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 10 सितंबर 2025 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
बहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत ही भावपूर्ण तृषित रचना
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