यूं गगन पर, टिमटिमाते ओ सितारे,
जरा, रौशनी ले आओ!
प्रदीप्त हो जलो, बस यूं न टिमटिमाओ,
अवरोध ढ़ले, किरण चहुं ओर जले,
जरा, बांहे तो फैलाओ!
तू करे इंतजार क्यूं, और कोई बात क्यूं,
डर के यूं, क्यूं जले, चुप, यूं क्यूं रहे,
बस यूं ना टिमटिमाओ!
न होते तुम अगर, ना जगती उम्मीद ये,
रहता जहां पड़ा, यूं ही अंधकार में,
विश्वास, यूं भर जाओ!
विलख रहा जो मन, तू उनको आस दो,
मन के अंधकार को, यूं प्रकाश दो,
इक विहान, बन आओ!
पुकारती हैं राहें, इक दीप तो जलाओ,
यूं गगन के, टिमटिमाते से सितारे,
जरा, रौशनी ले आओ!

सुंदर रचना सर।
ReplyDeleteसादर।
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नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार २२ अक्टूबर २०२५ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
ओ टिमटिमाते से तारे जरा रोशनी तो ले आओ , बहुत सुंदर भावमय रचना !
ReplyDeleteसुंदर | दीप पर्व शुभ हो मंगलमय हो |
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteशुभ दीपावली!! अति सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteशुभ दीपावली