Thursday, 29 October 2020

कदम

प्रारम्भ के, डगमग करते, वो दो कदम....
रहे वही निर्णायक!

चल पड़े जो, अज्ञात सी इक दिशा की ओर,
ले चले, न जाने किधर, किस ओर!
अनिश्चित से भविष्य के, विस्तार की ओर!
साथ चलता, इक सशंकित वर्तमान,
कंपित क्षण, अनिर्णीत, गतिमान!
इक स्वप्न, धूमिल, विद्यमान!

डगमग सी आशा, कभी गहराई सी निराशा,
लहरों सी उफनाती, कोई प्रत्याशा,
पग-पग, हिचकोले खाती, डोलती साहिल,
तलाशती, सुदूर कहीं अपनी मंजिल,
निस्तेज क्षितिज, लगती धूमिल!
लक्ष्य कहीं, लगती स्वप्निल!

जागृत, इक विश्वास, कि उठ खड़े होंगे हम, 
चुन लेंगे, निर्णायक दिशा ये कदम,
गढ़ लेंगे, स्वप्निल सा इक धूमिल आकाश,
अनन्त भविष्य, पा ही जाएगा अंत,
ज्यूँ, पतझड़, ले आता है बसन्त!
चिंगारी, हो उठती है ज्वलंत!

प्रारम्भ के, डगमग करते, वो दो कदम....
रहे वही निर्णायक!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)

22 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार ३० अक्टूबर २०२० के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

    ReplyDelete
  2. बढ़िया है महाशय!

    ReplyDelete
  3. Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया विभा दी

      Delete
  4. Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय जोशी जी।

      Delete
  5. बहुत ही सुंदर रचना आदरणीय सर

    ReplyDelete
  6. प्रारम्भ के, डगमग करते, वो दो कदम....
    रहे वही निर्णायक!
    बिल्कुल सही। किसी भी कार्य का प्रारंभ करते समय ही मन प्रायः डगमगाता है। वहाँ दृढनिश्चयी होकर काम शुरू कर दिया तो समझ लें कि आधी जंग जीत ली।
    Well begun is half done

    जागृत, इक विश्वास, कि उठ खड़े होंगे हम,
    चुन लेंगे, निर्णायक दिशा ये कदम,
    गढ़ लेंगे, स्वप्निल सा इक धूमिल आकाश,
    अनन्त भविष्य, पा ही जाएगा अंत..
    यही भाव मन में रहना चाहिए। बहुत प्रेरक रचना। सादर।

    ReplyDelete
  7. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  8. बहुत खूब पुरुषोत्तम जी! प्रायः प्रारंभ के दो कदम ही जीवन की दिशा तय कर देते हैं और मंजिल भी. एक और बौद्धिक और सार्थक सृजन आपकी कलम से. सादर सस्नेह शुभकामनायें🙏🙏💐💐🙏🙏

    ReplyDelete
  9. बहुत सुंदर सार्थक! जीवन चिंतन को आकंना होता है अपने ही पहले दो कदम के बाद के निर्णय ही सही दिशा दिखाते हैं दृढ़ता विश्वास जो जीत हैं निराशा आशंका कब हार बन जाए पता नहीं ।
    सुंदर सृजन।

    ReplyDelete