प्रारम्भ के, डगमग करते, वो दो कदम....
रहे वही निर्णायक!
चल पड़े जो, अज्ञात सी इक दिशा की ओर,
ले चले, न जाने किधर, किस ओर!
अनिश्चित से भविष्य के, विस्तार की ओर!
साथ चलता, इक सशंकित वर्तमान,
कंपित क्षण, अनिर्णीत, गतिमान!
इक स्वप्न, धूमिल, विद्यमान!
डगमग सी आशा, कभी गहराई सी निराशा,
लहरों सी उफनाती, कोई प्रत्याशा,
पग-पग, हिचकोले खाती, डोलती साहिल,
तलाशती, सुदूर कहीं अपनी मंजिल,
निस्तेज क्षितिज, लगती धूमिल!
लक्ष्य कहीं, लगती स्वप्निल!
जागृत, इक विश्वास, कि उठ खड़े होंगे हम,
चुन लेंगे, निर्णायक दिशा ये कदम,
गढ़ लेंगे, स्वप्निल सा इक धूमिल आकाश,
अनन्त भविष्य, पा ही जाएगा अंत,
ज्यूँ, पतझड़, ले आता है बसन्त!
चिंगारी, हो उठती है ज्वलंत!
प्रारम्भ के, डगमग करते, वो दो कदम....
रहे वही निर्णायक!
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार ३० अक्टूबर २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
हार्दिक आभार आदरणीया...
Deleteबढ़िया है महाशय!
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय
Deleteसुन्दर सृजन।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय
Deleteअद्धभुत सृजन हेतु बधाई
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया विभा दी
Deleteवाह
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय जोशी जी।
Deleteबहुत सुंदर।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय
Deleteबहुत ही सुंदर रचना आदरणीय सर
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद अनन्ता जी
Deleteप्रारम्भ के, डगमग करते, वो दो कदम....
ReplyDeleteरहे वही निर्णायक!
बिल्कुल सही। किसी भी कार्य का प्रारंभ करते समय ही मन प्रायः डगमगाता है। वहाँ दृढनिश्चयी होकर काम शुरू कर दिया तो समझ लें कि आधी जंग जीत ली।
Well begun is half done
जागृत, इक विश्वास, कि उठ खड़े होंगे हम,
चुन लेंगे, निर्णायक दिशा ये कदम,
गढ़ लेंगे, स्वप्निल सा इक धूमिल आकाश,
अनन्त भविष्य, पा ही जाएगा अंत..
यही भाव मन में रहना चाहिए। बहुत प्रेरक रचना। सादर।
हार्दिक आभार आदरणीया मीना जी।
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ReplyDelete😑
Deleteबहुत खूब पुरुषोत्तम जी! प्रायः प्रारंभ के दो कदम ही जीवन की दिशा तय कर देते हैं और मंजिल भी. एक और बौद्धिक और सार्थक सृजन आपकी कलम से. सादर सस्नेह शुभकामनायें🙏🙏💐💐🙏🙏
ReplyDeleteहृदयतल से आभार आदरणीया रेणु जी।
Deleteबहुत सुंदर सार्थक! जीवन चिंतन को आकंना होता है अपने ही पहले दो कदम के बाद के निर्णय ही सही दिशा दिखाते हैं दृढ़ता विश्वास जो जीत हैं निराशा आशंका कब हार बन जाए पता नहीं ।
ReplyDeleteसुंदर सृजन।
हृदयतल से आभार आदरणीया
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