Saturday, 22 January 2022

उनकी बातें

फिर, सुबह ले आई, उसी की भीनी यादें....

अधूरी ही, रह गई थी, सैकड़ों बातें,
उधर, स्वतः रातों का ढ़लना,
अंततः एक सपना,
आंखों में, भर गई थी उसकी बातें,
जैसे-तैसे, कटी थी रातें!

फिर, सुबह ले आई, उसी की भीनी यादें....

संदली, वही, खुश्बू ले आईं हवाएँ,
छू कर, बह चली, इक पवन,
अजीब सी, चुभन,
बहके से क्षण की, बहकी सौगातें,
कह गईं, उनकी ही बातें!

फिर, सुबह ले आई, उसी की भीनी यादें....

विहसते फूलों में, उनके ही अक्श,
कलियों में, उनकी इक हँसी,
पात-पात, चितवन,
दिलाती रही, हर क्षण उनकी यादें,
दिन भर, उनकी ही बातें!

फिर, सुबह ले आई, उसी की भीनी यादें....

अधूरी ही, रह गई थी, सैकड़ों बातें,
हौले से, ढ़लने लगे, वे प्रहर,
उभरता, इक सांझ,
विविध रंग, और, लम्बी लम्बी रातें,
और, वो सपनों की बातें!

फिर, सुबह ले आई, उसी की भीनी यादें....

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)

21 comments:

  1. अधूरी ही, रह गई थी, सैकड़ों बातें,
    हौले से, ढ़लने लगे, वे प्रहर,
    उभरता, इक सांझ,
    विविध रंग, और, लम्बी लम्बी रातें,
    और, वो सपनों की बातें...... बहुत सुंदर रचना

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  2. वाह! बस जारी रहे यादों का ये सफर!

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  3. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (23-1-22) को "पथ के अनुगामी"(चर्चा अंक 4319)पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
    --
    कामिनी सिन्हा

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  4. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर रविवार 23 जनवरी 2022 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  5. अधूरी ही, रह गई थी, सैकड़ों बातें,
    उधर, स्वतः रातों का ढ़लना,
    अंततः एक सपना,
    आंखों में, भर गई थी उसकी बातें,
    जैसे-तैसे, कटी थी रातें!
    .. यादों को परिभाषित करती बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति..

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  6. संदली, वही, खुश्बू ले आईं हवाएँ,
    छू कर, बह चली, इक पवन,
    अजीब सी, चुभन,
    बहके से क्षण की, बहकी सौगातें,
    कह गईं, उनकी ही बातें!
    बहुत ही खूबसूरत अभिव्यक्ति!
    यादें होतीं ही ऐसी है कि जो आती तो आंखे नम कर जाती है!

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  7. यादों का प्यारा सा सफर, बहुत सुंदर सृजन

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  8. आज बहुत दिनों बाद आपकी रचना पढ़ी....संदली, वही, खुश्बू ले आईं हवाएँ,
    छू कर, बह चली, इक पवन,
    अजीब सी, चुभन,
    बहके से क्षण की, बहकी सौगातें,
    कह गईं, उनकी ही बातें!
    ...क्‍या खूब लिखा है...वाह

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    Replies
    1. ह्रदयतल से आभार .. आदरणीय अलकनंदा जी।

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  9. यादों के झरोखों से झाँकती सुंदर रचना! साधुवाद!--ब्रजेंद्रनाथ

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  10. ह्रदयतल से आभार ... आदरणीय मर्मग्य जी

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  11. बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति

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