फिर, सुबह ले आई, उसी की भीनी यादें....
अधूरी ही, रह गई थी, सैकड़ों बातें,
उधर, स्वतः रातों का ढ़लना,
अंततः एक सपना,
आंखों में, भर गई थी उसकी बातें,
जैसे-तैसे, कटी थी रातें!
फिर, सुबह ले आई, उसी की भीनी यादें....
संदली, वही, खुश्बू ले आईं हवाएँ,
छू कर, बह चली, इक पवन,
अजीब सी, चुभन,
बहके से क्षण की, बहकी सौगातें,
कह गईं, उनकी ही बातें!
फिर, सुबह ले आई, उसी की भीनी यादें....
विहसते फूलों में, उनके ही अक्श,
कलियों में, उनकी इक हँसी,
पात-पात, चितवन,
दिलाती रही, हर क्षण उनकी यादें,
दिन भर, उनकी ही बातें!
फिर, सुबह ले आई, उसी की भीनी यादें....
अधूरी ही, रह गई थी, सैकड़ों बातें,
हौले से, ढ़लने लगे, वे प्रहर,
उभरता, इक सांझ,
विविध रंग, और, लम्बी लम्बी रातें,
और, वो सपनों की बातें!
फिर, सुबह ले आई, उसी की भीनी यादें....
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
अधूरी ही, रह गई थी, सैकड़ों बातें,
ReplyDeleteहौले से, ढ़लने लगे, वे प्रहर,
उभरता, इक सांझ,
विविध रंग, और, लम्बी लम्बी रातें,
और, वो सपनों की बातें...... बहुत सुंदर रचना
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया
Deleteवाह! बस जारी रहे यादों का ये सफर!
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय
Deleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (23-1-22) को "पथ के अनुगामी"(चर्चा अंक 4319)पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
--
कामिनी सिन्हा
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर रविवार 23 जनवरी 2022 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय
ReplyDeleteअधूरी ही, रह गई थी, सैकड़ों बातें,
ReplyDeleteउधर, स्वतः रातों का ढ़लना,
अंततः एक सपना,
आंखों में, भर गई थी उसकी बातें,
जैसे-तैसे, कटी थी रातें!
.. यादों को परिभाषित करती बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति..
ह्रदयतल से आभार
Deleteसंदली, वही, खुश्बू ले आईं हवाएँ,
ReplyDeleteछू कर, बह चली, इक पवन,
अजीब सी, चुभन,
बहके से क्षण की, बहकी सौगातें,
कह गईं, उनकी ही बातें!
बहुत ही खूबसूरत अभिव्यक्ति!
यादें होतीं ही ऐसी है कि जो आती तो आंखे नम कर जाती है!
ह्रदयतल से आभार ...
Deleteयादों का प्यारा सा सफर, बहुत सुंदर सृजन
ReplyDeleteह्रदयतल से आभार ...
Deleteआज बहुत दिनों बाद आपकी रचना पढ़ी....संदली, वही, खुश्बू ले आईं हवाएँ,
ReplyDeleteछू कर, बह चली, इक पवन,
अजीब सी, चुभन,
बहके से क्षण की, बहकी सौगातें,
कह गईं, उनकी ही बातें!
...क्या खूब लिखा है...वाह
ह्रदयतल से आभार .. आदरणीय अलकनंदा जी।
Deleteयादों के झरोखों से झाँकती सुंदर रचना! साधुवाद!--ब्रजेंद्रनाथ
ReplyDeleteह्रदयतल से आभार ... आदरणीय मर्मग्य जी
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति
ReplyDeleteह्रदयतल से आभार ... आदरणीया
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