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Thursday 24 December 2020

झील सा, अधबहा

गुफ्तगू, बहुत हुई गैरों से,
पर गाँठ, गिरह की, खुल न पाई!
है अन्दर, कितना अनकहा!
झील सा, अनबहा!
अब, बहना है,
इक दीवाने से, कहना है!

मिल जाए, तो अपना लूँ, 
माना, इक फलक है, बिखरा सा,
खुद में, कितना उलझा सा,
बंधा या, अधखुला!
कितना, टूटा है,
उन टुकड़ों को, चुनना है!

दो होते, तो होती गुफ्तगू,
चुप-चुप, करे क्या, मन एकाकी!
गगन करे भी क्या, तन्हा सा!
भींगा या, अधभींगा!
शायद, तरसा है!
उसे तन्हाई में, पलना है!

पहले, सहेज लूँ ये बहाव,
समेट लूँ, मन के सारे बहते भाव!
रोक लूँ, ले चलूँ किनारों पर!
बहने दूँ, ये अधबहा!
भँवर विहीन सा,
फिर बहाव में, बहना है!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Thursday 5 December 2019

लचकती शाखें

अनसुने ये गीत मेरे, तु जरा गुनगुना..

अनकहा वही, जो है अनसुना,
आवाज मेरी, जो न अब तलक बना,
गीत ये मेरे, तू जरा गुनगुना...

लचकती शाख सी, मन में रही,
डोलती हर बात पर, चुपचाप सी रही,
बाहें थाम कर, तू इसे मना...

राज ये कौन सा, गीत में ढ़ला,
साज ये कौन सा, इक संगीत में ढ़ला,
आवाज दे, तू जरा गुनगुना....

थिरका ये, समय की चाल पर,
रोता फिरा कभी ये, मेरे इस हाल पर,
नग्मा कोई, तू मुझको सुना..

लचकती हैं, रूँधी सी ये साँसें,
मचलती शाख सी, झूलती है ये साँसें,
आ संग-संग, तू इसे गुनगुना..

फिर न आएंगे, लौट कर हम,
न जाने कहाँ, किधर खो जाएंगे हम,
रह जाए न, गीत ये अनसुना..

अनसुने ये गीत मेरे, तु जरा गुनगुना..

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Thursday 25 July 2019

परिशब्द

यूं ही रहे, एहसासों पर अंकित, कुछ शब्द अनकहे !

एहसासों में पिरोया, लेकिन अध-बुना,
मन में गुंजित, फिर भी अनसुना,
लबों पर अंकित, पर शून्य सा, शब्द बिना!
न हमने कहा, न तुमने सुना!

यूं ही रहे, एहसासों पर अंकित, कुछ शब्द अनकहे !

घुमरते, भटकते, इस काल कपोल में,
न कोई ग्रन्थ, न ही कोई संग्रह,
चुप से रहे, अभिव्यक्त हो न सके बोल में!
खटकते रहे, मन में  रह-रह!

यूं ही रहे, एहसासों पर अंकित, कुछ शब्द अनकहे !

अभिलेखित थे सदा, पर थे निःशब्द,
सुसज्जित, हमेशा रहे थे शब्द,
अव्यवस्थित से क्यूं, न जाने हुए हैं शब्द!
हरकत से, कर रहे वो शब्द!

यूं ही रहे, एहसासों पर अंकित, कुछ शब्द अनकहे !

यूं कब तक, चुप रहे, बिन कुछ कहे,
गुम-सुम सा रहे, हाथों को गहे,
दहशत सी कोई, होने लगी है अब उसे!
वहशत में, शायद कुछ कहे!

यूं ही रहे, एहसासों पर अंकित, कुछ शब्द अनकहे !

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा