Thursday, 25 July 2019

परिशब्द

यूं ही रहे, एहसासों पर अंकित, कुछ शब्द अनकहे !

एहसासों में पिरोया, लेकिन अध-बुना,
मन में गुंजित, फिर भी अनसुना,
लबों पर अंकित, पर शून्य सा, शब्द बिना!
न हमने कहा, न तुमने सुना!

यूं ही रहे, एहसासों पर अंकित, कुछ शब्द अनकहे !

घुमरते, भटकते, इस काल कपोल में,
न कोई ग्रन्थ, न ही कोई संग्रह,
चुप से रहे, अभिव्यक्त हो न सके बोल में!
खटकते रहे, मन में  रह-रह!

यूं ही रहे, एहसासों पर अंकित, कुछ शब्द अनकहे !

अभिलेखित थे सदा, पर थे निःशब्द,
सुसज्जित, हमेशा रहे थे शब्द,
अव्यवस्थित से क्यूं, न जाने हुए हैं शब्द!
हरकत से, कर रहे वो शब्द!

यूं ही रहे, एहसासों पर अंकित, कुछ शब्द अनकहे !

यूं कब तक, चुप रहे, बिन कुछ कहे,
गुम-सुम सा रहे, हाथों को गहे,
दहशत सी कोई, होने लगी है अब उसे!
वहशत में, शायद कुछ कहे!

यूं ही रहे, एहसासों पर अंकित, कुछ शब्द अनकहे !

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा

11 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार, जुलाई 25, 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. बहुत ही सुन्दर रचना से
    सादर

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  3. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (28 -07-2019) को "वाह रे पागलपन " (चर्चा अंक- 3410) पर भी होगी।

    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ....
    अनीता सैनी

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  4. कोमल भावों से परिपूर्ण सुंदर रचना...

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    1. आभारी हूँ आदरणीया । आपका हार्दिक स्वागत है मेरे ब्लॉग पर ।

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  5. सुन्दर प्रस्तुति

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय ओंकार जी।

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  6. अहसासों के ये अनकहे शब्द ही तो रचना का रूप लेते हैं महाशय !!!☺ अगर कह ही देते तो रचनाएँ कैसे गढ़ी जाती भला ...

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  7. सच कहा आपने । आपकी प्रतिक्रिया हेतु आभारी हूँ आदरणीय ।

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