शतदल हजार छू के, टोक गए झौंके!
हुए बेजार, टूटे तार-तार!
टीस सी उठी, असह्य सी चोट लगी,
सर्द कोई, इक तीर सी चली,
मन ही, चीर चली,
गुजरे, वो जिधर हो के...
शतदल हजार छू के, टोक गए झौंके!
बार-बार, फिर वो बयार!
हिल उठी, जमीं, नींव ही ढ़ह चुकी,
खड़ी थी, वो वृक्ष भी गिरी,
बिखरे थे, पात-पात,
गुजरे, वो जिधर हो के...
शतदल हजार छू के, टोक गए झौंके!
टोके ना कोई, यूँ बेकार!
अपना ले, यूँ सपने तोड़े न हजार,
चोट यही, मन की न भली,
सूखी है, हर कली,
गुजरे, वो जिधर हो के...
शतदल हजार छू के, टोक गए झौंके!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
हुए बेजार, टूटे तार-तार!
टीस सी उठी, असह्य सी चोट लगी,
सर्द कोई, इक तीर सी चली,
मन ही, चीर चली,
गुजरे, वो जिधर हो के...
शतदल हजार छू के, टोक गए झौंके!
बार-बार, फिर वो बयार!
हिल उठी, जमीं, नींव ही ढ़ह चुकी,
खड़ी थी, वो वृक्ष भी गिरी,
बिखरे थे, पात-पात,
गुजरे, वो जिधर हो के...
शतदल हजार छू के, टोक गए झौंके!
टोके ना कोई, यूँ बेकार!
अपना ले, यूँ सपने तोड़े न हजार,
चोट यही, मन की न भली,
सूखी है, हर कली,
गुजरे, वो जिधर हो के...
शतदल हजार छू के, टोक गए झौंके!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)