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Friday, 3 August 2018

लिखता हूं अनुभव

निरंतर शब्दों मे पिरोता हूं अपने अनुभव....

मैं लिखता हूं, क्यूंकि महसूस करता हूं,
जागी है अब तक आत्मा मेरी,
भाव-विहीन नहीं, भाव-विह्वल हूं,
कठोर नहीं, हृदय कोमल हूं,
आ चुभते हैं जब, तीर संवेदनाओं के,
लहू बह जाते हैं शब्दों में ढ़लके,
लिख लेता हूं, यूं संजोता हूं अनुभव...

निरंतर शब्दों मे पिरोता हूं अपने अनुभव....

मैं लिखता हूं, जब विह्वल हो उठता हूं,
जागृत है अब तक इन्द्रियाँ मेरी,
सुनता हूं, अभिव्यक्त कर सकता हूं,
संजीदा हूं, संज्ञा शून्य नहीं मैं,
झकझोरती हैं, मुझे सुबह की किरणें,
ले आती हैं, सांझ कुछ सदाएं,
सुन लेता हूं, यूं बुन लेता हूं अनुभव...

निरंतर शब्दों मे पिरोता हूं अपने अनुभव....

Wednesday, 6 April 2016

अभिसार

ये घर मेरा है तेरे लिए, पर यह तेरा संसार नहीं,
बनी है तू मेरे लिए, पर मैं तेरा सार नही,
हुए पू्र्ण तुम मेरे ही संग, पर मैं तेरा अभिसार नहीं।

जिस रूप का अक्श है तू, जीता था वो मेरे लिए,
जिस नक्श में ढ़ली है तू, वो रूप है मेरे लिए,
मन मे तेरे रहता हूँ मैं, भटकती ये आत्मा तेरे लिए।

कुछ लेख विधि का ऐसा, लकीर हाथों मे वो नहीं,
मन ढ़ूंढ़ता है जिसे, मिलता नही वो शख्स कहीं,
नक्श एक दफन हो रही, फिर उस हृदय में ही कहीं।

हर शख्स फिरता यहाँ, पनघट पे ही प्यासा यूँ हीं,
कुछ बूँद के मिल जाने से, प्यास वो बुझी नहीं,
अनजान सी प्यास की, तलाश में मन अतृप्त हैं कहीं।

काश! मन चाहता है जिसे, संसार भी मिलता वही,
बूंदों की बौछार में, भटकता कोई प्यासा नही,
पूर्ण होती वो संग-संग, फूलों से हम खिल जाते यहीं।

Friday, 15 January 2016

हिरण सा मन

हिरन सा चंचल मन कैद में विवश,
कुटिल शिकारी के जाल फसा मोहवश,
कुलाँचे भर लेने को उत्तेजित टांगें,
चाहे तोड़ देना मोहबंधन के जाल बस।

फेके आखेटक ने मोह के कई वाण,
चंचल मन भूल वश ले फसता जान,
मन में उठती पीड़ा पश्चाताप के तब,
जाल मोहमाया का क्युँ आया न समझ।

छटपटाते प्राण उसके हो आकुल,
मोहपाश क्युँ बंधा सोचे हो व्याकुल,
स्वतंत्र विचरण को आत्मा पुकारती,
धिक्कारती खुद को हिरण ग्लानि वश।