बिसरिए ना, न बिसारने दीजिए,
गांठ, मन के बांधिए,
इधर जाइए!
यूं नाजुक, बड़े ही, ये डोर हैं,
निर्मूल आशंकाओं के, कहां कब ठौर हैं,
ढ़ल न जाए, सांझ ये,
दिये, उम्मीदों के,
इक जलाइए!
बिसरिए ना, न बिसारने दीजिए,
गांठ, मन के बांधिए,
आ जाइए!
धुंधली, हो रही तस्वीर इक,
खिच रही हर घड़ी, उस पर लकीर इक,
सन्निकट, इक अन्त वो,
जश्न, ये बसन्त के,
संग मनाईए!
बिसरिए ना, न बिसारने दीजिए,
गांठ, मन के बांधिए,
आ जाइए!
बिसार देगी, कल ये दुनियां,
एक अंधर, बहा ले जाएगी नामोनिशां,
सिलसिला, थमता कहां,
वक्त ये, मुकम्मल,
कर जाईए!
बिसरिए ना, न बिसारने दीजिए,
गांठ, मन के बांधिए,
आ जाइए!
(सर्वाधिकार सुरक्षित)