Showing posts with label उनींद. Show all posts
Showing posts with label उनींद. Show all posts

Tuesday, 2 March 2021

कितनी रात बुनता

और कितनी, रात बुनता!
बैठकर किनारे, और कितने, तारे गिनता!

वो ही, अल्हड़ सी रात, 
कहती रही, सिर्फ, अपनी ही बात,
मनमर्जियाँ, मनमानियाँ,
कौन, मेरी सुनता!

और कितनी, रात बुनता!
बैठकर किनारे, और कितने, तारे गिनता!

आँखें, नींद से बोझिल,
पर, कहीं दूर, पलकों की मंजिल,
उन निशाचरों की वेदना,
और कैसे, सुनता!

और कितनी, रात बुनता!
बैठकर किनारे, और कितने, तारे गिनता!

वो तम था, या तमस!
दूर था बहुत, वो कल का दिवस,
गहराते, रातों के सन्नाटे,
कौन, चुन लेता!

और कितनी, रात बुनता!
बैठकर किनारे, और कितने, तारे गिनता!

लब्ध था, वो आकाश,
पर, आया ना, वो भी अंकपाश,
टिम-टिमाते से, वो तारे,
क्यूँ कर, देखता!

और कितनी, रात बुनता!
बैठकर किनारे, और कितने, तारे गिनता!

थी, ढ़ुलकती सी नींद,
ये पलकें, होने लगी थी उनींद,
सो गया, तान कर चादर,
कितना, जागता!

और कितनी, रात बुनता!
बैठकर किनारे, और कितने, तारे गिनता!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)