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Thursday, 11 April 2019

संकेत

प्रथमतः, संकेत मुखर हो,
प्रबल कोई आशा, फिर प्रत्युत्तर की हो!

संकेत बसंत का पाकर,
झूमी ये वसुधा,
नव श्रृंगार किए पल्लव नें,
रसपान किया भौरों ने,
कूकी कोयल,
गूंजा एक स्वर, जय-जय बसंत की हो!

प्रथमतः, संकेत मुखर हो,
प्रबल कोई आशा, फिर प्रत्युत्तर की हो!

संकेत मिला जब सावन का,
करती नृत्य क्रीड़ा,
बरसी झूम-झूमकर बदरा,
भींगी हरित हो वसुधा,
लहलहाए फसल,
गूंजा प्राणों में स्वर, सावन की जय हो!

प्रथमतः, संकेत मुखर हो,
प्रबल कोई आशा, फिर प्रत्युत्तर की हो!

संंकेत, मौन व्योम की भाषा,
जीने की अभिलाषा,
मुखरित चेतना की जिज्ञासा,
लिख जाते हैं दो नैंना,
संकेतों में गजल,
गूंजा है ओम, चराचर व्योम की जय हो!

प्रथमतः, संकेत मुखर हो,
प्रबल कोई आशा, फिर प्रत्युत्तर की हो!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा