Showing posts with label कविवर. Show all posts
Showing posts with label कविवर. Show all posts

Saturday 8 May 2021

पाठक व्यथा-कथा

ऐ कविवर, बिखरा दो, पन्नों पर, शब्दों को,
ताकि, शेष रहे ना, कुछ लिखने को!

यूँ लिखते हो, तो दर्द बिखर सा जाता है,
ये टीस, जहर सा, असर कर जाता है,
ठहर सा जाता है, ये वक्त वहीं!
यूँ ना बांधो, ना जकड़ो, उस पल में मुझको,
इन लम्हों में, जीने दो अब मुझको!

ऐ कविवर, बिखरा दो, पन्नों पर, शब्दों को,
ताकि, शेष रहे ना, कुछ लिखने को!

करुण कथा, व्यथा की, यूँ, गढ़ जाते हो,
कोई दर्द, किसी के सर मढ़ जाते हो,
यूँ खत्म हुई कब, करुण कथा!
राहत के, कुछ पल, दे दो, आहत मन को,
जीवंत जरा, रहने दो अब मुझको!

ऐ कविवर, बिखरा दो, पन्नों पर, शब्दों को,
ताकि, शेष रहे ना, कुछ लिखने को!

यूँ, करूँ क्या, लेकर तुम्हारी ये संवेदना!
क्यूँ जगाऊँ, सोई सी अपनी चेतना!
कहाँ सह पाऊँगा, मैं ये वेदना!
अपनी ही संवेदनाओं में, बहने दो मुझको,
आहत यूँ ना, रहने दो अब मुझको!

ऐ कविवर, बिखरा दो, पन्नों पर, शब्दों को,
ताकि, शेष रहे ना, कुछ लिखने को!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)