कोई गूढ़ सी, वो बात है......
उनींदी सी, खुली पलक,
विहँसती, निहारती है निष्पलक,
मूक कितना, वो फलक!
छुपाए, वो कोई,
इक राज है!
कोई गूढ़ सी, वो बात है......
लबों की, वो नादानियाँ,
हो न हो, तोलती हैं खामोशियाँ,
सदियों से वो सिले लब!
दबाए, वो कोई,
इक बात है!
कोई गूढ़ सी, वो बात है......
हो प्रेम की, ये ही भाषा,
हृदय में जगाती, ये एक आशा,
यूँ ना धड़कता, ये हृदय!
बजाए, वो कोई,
इक साज है!
कोई गूढ़ सी, वो बात है......
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
लबों की, वो नादानियाँ,
ReplyDeleteहो न हो, तोलती हैं खामोशियाँ,
सदियों से वो सिले लब!
दबाए, वो कोई,
इक बात है...बहुत सुंदर
विनम्र आभार
Deleteसाज बजता रहे ...दिल धड़कता रहे ... गूढ़ सी बात का मर्म समझ आ जाये .....
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति .
वाह👌♥️
ReplyDeleteविनम्र आभार
Deleteसुन्दर सृजन।
ReplyDeleteविनम्र आभार
Deleteसदैव की तरह बेहतरीन।
ReplyDeleteआपकी रचनाओं के माध्यम से सदैव कुछ नये शब्दों से मेरा मिलना हो जाता है।
बिना आपके इज़ाज़त से मैं आपका कॉन्टैक्ट न. सुरक्षित कर लिया हूँ। आशा है आप इसे मेरी आवश्यकता ही समझेंगे।
Deleteविनम्र आभार
Deleteइसी बहाने आप जैसे कलाप्रेमी/ साहित्य प्रेमी से संपर्क भी हो सकेगा। शुक्रिया। ।।।
Deleteलबों की, वो नादानियाँ,
ReplyDeleteहो न हो, तोलती हैं खामोशियाँ,
बहुत सुंदर रचना
विनम्र आभार
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 18 मई 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteविनम्र आभार
Deleteहो प्रेम की, ये ही भाषा,
ReplyDeleteहृदय में जगाती, ये एक आशा,
यूँ ना धड़कता, ये हृदय!
बजाए, वो कोई,
इक साज है!
अद्भुत
विनम्र आभार
Deleteसुन्दर मन भावन पंक्तियों!!
ReplyDeleteविनम्र आभार
Deleteगूढ़ सी ही बात जीवन में रस का सृजन करती है, सुंदर सृजन
ReplyDeleteविनम्र आभार
Deleteवाह!पुरुषोत्तम जी ,लाजवाब सृजन ।
ReplyDeleteविनम्र आभार
Deleteबहुत सुंदर!!!
ReplyDeleteविनम्र आभार
Deleteबहुत सुन्दर लाजवाब लेखन सर
ReplyDeleteविनम्र आभार
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार ३१ दिसंबर २०२१ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
शुभकामनाएं..
ReplyDeleteसादर नमन
शुभकामनाएँ ।
ReplyDeleteहो प्रेम की, ये ही भाषा,
ReplyDeleteहृदय में जगाती, ये एक आशा,
यूँ ना धड़कता, ये हृदय!
बजाए, वो कोई,
इक साज है!
कोई गूढ़ सी, वो बात है......
वाह!!!
प्रेममयी आशातीत सृजन
लाजवाब।
उनींदी सी, खुली पलक,
ReplyDeleteविहँसती, निहारती है निष्पलक,
मूक कितना, वो फलक!
छुपाए, वो कोई,
इक राज है!.. बहुत ही सुंदर।
नव वर्ष की बधाई एवं मंगल कामना।
समस्त जनों का हार्दिक आभार और शुभकामनाएं।।।।
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