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Saturday, 28 October 2017

कुछ कहो ना

प्रिय, कुछ कहो ना! 
यूँ चुप सी खामोश तुम रहो ना!

संतप्त हूँ, 
तुम बिन संसृति से विरक्त हूँ,
पतझड़ में पात बिन, 
मैं डाल सा रिक्त हूँ...
हूँ चकोर, 
छटा चाँदनी सी तुम बिखेरो ना,
प्रिय, कुछ कहो! यूँ चुप तो तुम रहो ना!

सो रही हो रात कोई, 
गम से सिक्त हो जब आँख कोई, 
सपनों के सबल प्रवाह बिन,
नैन नींद से रिक्त हो...
आवेग धड़कनों के मेरी सुनो ना,
मन टटोल कर तुम, 
संतप्त मन में ख्वाब मीठे भरो ना,
प्रिय, कुछ कहो! यूँ चुप तो तुम रहो ना!

चुप हो तुम यूँ!
जैसे चुप हो सावन में कोई घटा,
गुम हो कूक कोयल की,
विरानियों में घुल गई हो कोई सदा,
खामोश सी इक गूँज है अब,
संवाद को शब्द दो,
लब पे शिकवे-गिले कुछ तो भरो ना,
प्रिय, कुछ कहो! यूँ चुप तो तुम रहो ना!

क्यूँ नाराज हो?
क्यूँ गुमसुम सी बैठी उदास हो?
भूल मुझसे हुई गर,
बेशक सजा तू मुझ पे तय कर,
संताप दो न,
तुम यूँ चुपचाप रहकर ...
मन की खलिश ही सही, कह भी दो ना,
प्रिय, कुछ तो कहो! यूँ चुप तो तुम रहो ना!

प्रिय, कुछ कहो ना! 
यूँ चुप सी खामोश तुम रहो ना!

Tuesday, 23 February 2016

शाम कुछ यहाँ कुछ वहाँ

हुई है शाम दोनो तरफ, कुछ यहाँ भी और वहाँ भी,
पल रहे अरमान दोनों तरफ, इक यहाँ और इक वहाँ भी,
सिलसिले तन्हाईयों के अब हैं,
 कुछ यहाँ भी और कुृछ वहाँ भी।

इक सपना पल रहा यहाँ, एक पल रहाँ वहाँ भी,
नींद आँखों से है गुमशुदा, कुछ यहाँ और कुछ वहाँ भी,
धड़कनें की जुबाँ अब बेजुबाँ हैं,
 कुछ यहाँ भी और कुृछ वहाँ भी।

ख्वाब आँखों मे पल रहे हैं, कुछ यहाँ और कुछ वहाँ भी।
बजती है मन में शहनाईयाँ, अब यहाँ और वहाँ भी,
गीत साँसों मे अब बज रही है,
 कुछ यहाँ भी और कुृछ वहाँ भी।

कतारें रौशनी की अब, कुछ यहाँ भी कुछ वहाँ भी।
इंतजार उस पल का, अब यहाँ भी वहाँ भी,
शाम ढल रही अब तुम बिन,
 कुछ यहाँ भी और कुृछ वहाँ भी।