सर्द खामोश सी ख्वाहिशें,सुलग उठी है फिर हलके से.....
कुछ ऐसा कह डाला है तुमने धीरे से,
नैया जीवन की फिर चल पड़ी है लहरों पे,
अंगड़ाईयाँ लेती ख्वाहिशें हजार जाग उठी है चुपके से।
बुनने लगा हूँ मैं सपने उन ख्वाहिशों के,
आशा के पतवार लिए खे रहा नाव लहरों पे,
सपनों का झिलमिल संसार अब दूर कहाँ मेरी नजरों से।
ख्वाहिश तुझ संग सावन की झूलों के,
मांग सजी हों तेरी कुमकुम और सितारों से,
बिखरे होली के सत रंगी बहार तेरे आँचल के लहरों से।
हँस पड़ते हों मौसम तेरी मुस्कानों से,
बरसते हों रिमझिम सावन तेरे आ जाने से,
बसंती मौसम हों गुलजार आहट पे तेरे इन कदमों के।
तेरी बाहों के झूले में मेले हों जीवन के,
बाँट लेता तुझ संग मैं पल वो एकाकीपन के,
तुम जिक्र करती बारबार आँखों में फिर उन सपनों के।
पिरो लेता तेरे ही सपने अपनी नींदों में,
खोलता मैं आँखें, सामने तुम होती आँखों के,
जुल्फें लहराती हरबार तुम आ जाती सामने नजरों के।
लग जाते मेले फिर ख्वाहिशों के,
खिल आते बाग में दो फूल तेरे मेरे बचपन के,
कटते जीवन के दिन चार, रंग भरते तेरी ख्वाहिशों के।
सर्द खामोश सी ख्वाहिशें,सुलग उठी है फिर हलके से.....
कुछ ऐसा कह डाला है तुमने धीरे से,
नैया जीवन की फिर चल पड़ी है लहरों पे,
अंगड़ाईयाँ लेती ख्वाहिशें हजार जाग उठी है चुपके से।
बुनने लगा हूँ मैं सपने उन ख्वाहिशों के,
आशा के पतवार लिए खे रहा नाव लहरों पे,
सपनों का झिलमिल संसार अब दूर कहाँ मेरी नजरों से।
ख्वाहिश तुझ संग सावन की झूलों के,
मांग सजी हों तेरी कुमकुम और सितारों से,
बिखरे होली के सत रंगी बहार तेरे आँचल के लहरों से।
हँस पड़ते हों मौसम तेरी मुस्कानों से,
बरसते हों रिमझिम सावन तेरे आ जाने से,
बसंती मौसम हों गुलजार आहट पे तेरे इन कदमों के।
तेरी बाहों के झूले में मेले हों जीवन के,
बाँट लेता तुझ संग मैं पल वो एकाकीपन के,
तुम जिक्र करती बारबार आँखों में फिर उन सपनों के।
पिरो लेता तेरे ही सपने अपनी नींदों में,
खोलता मैं आँखें, सामने तुम होती आँखों के,
जुल्फें लहराती हरबार तुम आ जाती सामने नजरों के।
लग जाते मेले फिर ख्वाहिशों के,
खिल आते बाग में दो फूल तेरे मेरे बचपन के,
कटते जीवन के दिन चार, रंग भरते तेरी ख्वाहिशों के।
सर्द खामोश सी ख्वाहिशें,सुलग उठी है फिर हलके से.....