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Friday, 11 January 2019

गुजारिश

ऐ बेजार हवाओं!
है बस एक गुजारिश!
तुम गीत न ऐसे, फिर मुझको सुनाओ!

सदियाँ सूखीं, युग-युगांतर सूख गए,
नदियाँ सूखीं, झील, ताल-तलैया सूख गए,
मौसम बदले, हवाओं के रुख मोड़ गए,
सूखे पत्ते, अगणित राहों में छोड़ गए......

ऐ बेजार हवाओं!
है बस एक गुजारिश!
बरस भी जाओ, सदा न ऐसे भरमाओ!

भूल चले सब, अब रिमझिम के धुन,
गूंज रहे कानों में, खड़-खड़ पत्तों के धुन,
पनघट बाजे ना, पायल की रून-झुन,
छेड़ जरा तू, फिर से बारिश की धुन.....

ऐ बेजार हवाओं!
है बस एक गुजारिश!
गाओ, गीत कोई मतवाला फिर से गाओ!

सूखे हैं तट, मांझी की सूनी है नैय्या,
सूनी नजरों से, टुक-टुक ताके है खेवैय्या,
गीत न कोई गाए, गुमसुम सा गवैय्या,
बोल, बेरहम सा क्यूँ तेरा है रवैय्या......

ऐ बेजार हवाओं!
है बस एक गुजारिश!
रूठो ना तुम, राग सुरीला फिर सेे गाओ!

सूखे से मौसम में, भीगी हैं ये आँखें,
बेमौसम, बरस जाती है जब-तब ये आँखें,
हृदय तक, जल-प्लावित हैं सारी राहें,
तुम भीग लो, ले लो इनकी ही आहें...

ऐ बेजार हवाओं!
है बस एक गुजारिश!
रूखे गीत ऐसे, फिर से तुम ना गाओ!