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Saturday, 3 February 2024

ढ़लती सांझ

ढ़लनी है, ढ़ल तो जाएगी ये सांझ,
रुकेंगी, वो कब तलक,
ठहरेंगी, वो कैसे!
प्रबल होती निशा, सिमटती दिशा,
बंदिशें, वक्त के हैं बहुत!

ढ़लनी है, ढ़ल तो जाएगी ये सांझ,
लघुतर, जीवन के क्षण,
विरह का, आंगन,
वृहदतर, तप्त उच्छवासों के क्षण,
इन्हें कौन करे पराजित!

ढ़लनी है, ढ़ल तो जाएगी ये सांझ,
पर बिखेर कर, किरणें,
उकेर कर, सपने, 
क्षितिज पर, उतार कर सारे गहने,
कर जाएगी, अभिभूत!

ढ़लनी है, ढ़ल तो जाएगी ये सांझ,
कर, नैनों को विस्मित,
हर जाएगी, मन,
खोलकर, बंद कितने ही चिलमन,
कर जाएगी, आत्मभूत!

ढ़लनी है, ढ़ल तो जाएगी ये सांझ..