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Sunday, 4 November 2018

सर्द हवाएं

दस्तक ये कैसी, देकर गई सर्द सी हवाएं.....

कहीं जम सी गईं है कुछ बूँद,
कहीँ छाने लगी है आँखों में धुंध,
कहीं ख्वाब बुनने लगा है मन,
कहीं खामोशियां दे रही हैं सदाएं ....

दस्तक ये कैसी, देकर गई सर्द सी हवाएं.....

कोई तकता आँखों को भींचे,
कोई जगता यूहीं आँखो को मूंदे,
कोई रंग सजाने लगा है मन,
कोई बुनने लगा है कई ख्वाहिशें ....

दस्तक ये कैसी, देकर गई सर्द सी हवाएं.....

ओस बनकर गिरी बूंदें कई,
मचलने लगी ओस की बूँदें कहीं,
कुछ बूँद भिगोने लगा है मन,
कुछ बूँद भरने लगी है सर्द आहें......

दस्तक ये कैसी, देकर गई सर्द सी हवाएं.....

डोलने लगी है डाल-डाल,
कुछ बोलने लगी है डाल-डाल,
कोई गीत गाने लगा है मन,
कोई राज खोलने लगी है दिशाएं......

दस्तक ये कैसी, देकर गई सर्द सी हवाएं.....

Thursday, 25 October 2018

श्वेत-श्याम

होने लगी है, श्वेत-श्याम अब ये शाम,
लगने लगी है, इक अजनबी सी अब ये शाम....

इक गगन था पास मेरे.....
विस्तार लिए, भुजाओं का हार लिए,
लोहित शाम, हर बार लिए,
रंगो की फुहार, चंचल सी सदाएं,
वो सरसराहट, उनके आने की आहट,
पहचानी सी कोई परछांईं,
थी हर एक शाम, इक पुकार लिए.....

हो चला अब, बेरंग सा वो ही गगन,
होने लगी अब, श्वेत-श्याम हर एक शाम....

इक गगन अब पास मेरे.....
निस्तेज सा, संकुचित विस्तार लिए,
श्वेत श्याम सा उपहार लिए,
धुंध में घिरी, संकुचित सी दिशाएं,
न कोई दस्तक, न आने की कोई आहट,
अंजानी सी कई परछांई,
बेरंग सी ये शाम, उनकी पुकार लिए.....

मलीन रंग  लिए, तंज कसती ये शाम,
लगने लगी है, इक अजनबी सी अब ये शाम....

Thursday, 6 October 2016

दस्तक देते पल

दस्तक देते हैं कुछ पल बीते वक्त के तहखाने से ....

ऐ वक्त के बहते हुए अनमस्क से साये,
लघु विराम दे तू अपनी यात्रा को,
देख जरा छीना है कैसे तूने उन लम्हों को,
सिमटी हैं उन लम्हों में ही मेरे जीवन की यादें,
तू लेकर आ यादों के वो घनेरे से छाये,
तेरी तहखानों में कैद हुए वो पल, मुझको लौटा दे.....

ऐ वक्त के बहते हुए अनवरत से धारे,
खोई तेरी धारा में, चपलता यौवन की मेरी,
बदली है काया, बदली सी सूरत है मेरी,
मायने बदल गए हैं रिश्तों के इन राहों में तेरी,
छूट गई राहों में कितने ही साँसों की डोरी,
दस्तक देते उन लम्हातों के पल, मुझको लौटा दे.....

झाँक रहे है वो कुछ पल बीते वक्त के तहखाने से ....