Showing posts with label दुआ. Show all posts
Showing posts with label दुआ. Show all posts

Thursday 6 May 2021

दोस्तों के नाम

लो दोस्त......

गर, रिक्त हो चला हो, 
तूणीर तेरा,
तेरी धमनियों में, ना थम रहा हो, 
रक्त का, उठता थपेरा,
तीर ले लो, तुम ये भी मेरा,
बरसों से, पड़े है ये,
जंग खाए,
अपनों पर, जो मुझसे चल न पाए,
शायद, संभाल ले ये,
उबाल तेरा!

लो दोस्त......

फिर भी, ना थमे गर,
तेरा जिगर,
तीर सारे, हो चले जब बेअसर,
भर लेना, फिर तूणीर,
या, घोंप देना, कोई खंजर,
ना रहे, कोई कसर,
ना मलाल,
रक्त, शायद मेरा, बन उड़े गुलाल,
शायद, निकाल दे ये,
उबाल तेरा!

लो दोस्त......

तुम लो, सारी दुआएँ,
सलाम मेरा,
यूँ चमकता रहे, तेरा हर सवेरा,
पर ना, भूल जाना,
दिल ही तेरा, मेरा ठिकाना,
सदा ही, धड़कूंगा मैं,
ना रुकुंगा,
हृदय मध्य, तुमसे ही आ मिलूंगा,
शायद, संभाल ले ये,
उबाल तेरा!

लो दोस्त......

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Friday 3 January 2020

दुआ (बुजुर्ग)

दुआ उन्हीं की, ले आएगी पुरवाई!

हमारे बुजुर्ग, तन्हाई में खुद को समेटे, इन्तजार में पथराई आँखों  और टूटती साँसों के अन्तिम क्षणों में भी, अपने बच्चों के लिए लबों पर दुआ की कामना ही रखते हैं।

जीवन के बेशकीमती वक्त हमारे देख-रेख में गुजारते हुए वे भूल जाते हैं कि उनकी अगली पीढ़ी के पास, उन्हीं के लिए वक्त नहीं है। अपने रिक्त हाथों में दुआओं की असंख्य लकीरे लिए, वे हमारा ही इन्तजार करते बैठे होते हैं । ये युवा पीढ़ी पर निर्भर करता है कि वो इन बेशकीमती दुआओं को समेट कर अपना दामन भरे या रिक्तताओं से भरा एक भविष्य की वो भी बाट जोहें।

शायद एक पुरवाई बहे, इसी उम्मीद में,  प्रस्तुत है चंद पंक्तियाँ, एक रचना के स्वरूप में ....

दुआ उन्हीं की, ले आएगी पुरवाई!

जीर्ण हुए, उन हाथों में न थी ताकत,
दीर्घ रिक्तता थी, बची न थी जीने की चाहत,
पर उन आँखों में थी, नेक सी रहमत,
सर पर, हाथ उसी ने थी फिराई!

दुआ उन्हीं की, ले आएगी पुरवाई!

लम्हे शेष कहाँ थे, उनकी जीवन के,
जाते हर लम्हे, दे जाते इक दस्तक मृत्यु के,
शब्द-शब्द थे, उनकी बस करुणा के,
उस करुणा में, जैसे थी तरुणाई!

दुआ उन्हीं की, ले आएगी पुरवाई!

उस अन्तिम क्षण, पलकें थी पथराई,
वो दूर कहीं थे, जिन पर थी ममता बरसाई,
मन विह्वल थे, वो आँखें थी भर आई,
अन्त समय, होते कितने दुखदाई!

दुआ उन्हीं की, ले आएगी पुरवाई!

संग कहाँ है कोई, जीवन के उस पार,
मंद मलय बहती है, बस जीवन के इस पार,
बह चली ये मंद समीर, आज उस पार,
मन पर मलयनील, यह कैसी छाई!

दुआ उन्हीं की, ले आएगी पुरवाई!

आह न उनकी लेना, बस परवाह जरा उनकी कर लेना। कल ये बुजुर्ग, शायद, कभी हम में ही न लौट आएं, और कटु एक अनुभव, ऐसा ही, जीवन का ना दे जाएँ।

क्यूँ न, जीवन चढ़ते-चढ़ते, भविष्य की नई एक राह गढ़ते चलें । बुजुर्गों के हाथ उठे, तो बस एक खुशनुमा सा दुआ बनकर। दुआ उन्हीं की, ले आएगी पुरवाई!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)