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Friday, 19 February 2021

याचक तेरा

एहसान किया, जो तुमने अपनाया!
इतना ही, कह पाऊँ मैं!

किसी सुन्दरता का, बन पाता श्रृंगार,
किसी गले का, बन पाता हार,
पर, आकर्षण इतना भी नहीं मुझमें, 
सुंदर इतना भी, नहीं मैं!

एहसान किया, जो तुमने अपनाया!
इतना ही, कह पाऊँ मैं!

कौन पूछता, बेजान पड़े पत्थरों को,
सदियों से, उजड़े हुए घरों को,
जीवन्त कोई, उपसंहार नहीं जिसमे,
कुछ-कुछ, ऐसा ही मैं!

एहसान किया, जो तुमने अपनाया!
इतना ही, कह पाऊँ मैं!

मैं तो, दूर पड़ा था, एकान्त बड़ा था,
इस मन में, व्यवधान जरा था,
कौन यहाँ, जो संग मेरे पथ पर चले,
इस लायक भी नही मैं!

एहसान किया, जो तुमने अपनाया!
इतना ही, कह पाऊँ मैं!

है इस उर में क्या, समझे कौन यहाँ,
नादां सा मन, ऐसा और कहाँ!
पर, विराना सा, जैसे हो इक वादी,
वैसा ही, फरियादी मैं!

एहसान किया, जो तुमने अपनाया!
इतना ही, कह पाऊँ मैं!

एहसान बड़ा, जो, आ बसे मुझ में, 
स्वर लहरी बन, गा रहे उर में,
अपलक, सुनता हूँ अनसुना गीत,
बन कर, इक राही मैं!

एहसान किया, जो तुमने अपनाया!
इतना ही, कह पाऊँ मैं!

श्रृंगार बन सका तेरा, उद्गार ले लो,
इन साँसों का, उपहार ले लो,
इक निर्धन, और दे पाऊँ भी क्या,
याचक हूँ, तेरा ही मैं!

एहसान किया, जो तुमने अपनाया!
इतना ही, कह पाऊँ मैं!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Friday, 3 June 2016

जुल्फों के पेंच

उलझी हैं राहें तमाम,
इन घने जुल्फों के पेंच में,
सवाँरिए जरा इन जुल्फों को आप,
कुछ पेंचों को कम कीजिए।

बादल घनेरे से छाए हैं,
लहराते जुल्फों के साए में,
समेटिए जरा जुल्फों को आप,
जरा रौशन उजाला कीजिए।
तीर नजरों के चले हैं,
जुल्फ के इन कोहरों तले,
संभालिए अपनी पलकों को आप,
वार नजरों के कम कीजिए।

तबस्सुम बिखर रहे हैं,
चाँदनी रातों की इस नूर में,
दिखाईए न यूँ इन जलवों को आप,
इस दिल पे सितम न कीजिए।

भटके हैं यहाँ राही कई,
दुर्गम घने इन जुल्फों की पेंच में,
लहराईए न अब इन जुल्फों को आप,
इस राहगीर को न भटकाईए।

Wednesday, 24 February 2016

मैं सीधी राह का राही

राह मुड़ती भी है कहीं, मुझको ये पता न था,
तंग राहों होकर ये दिल, आज तक गुजरा न था,
चाल कैसी चल रहे दोस्त, मुझको ये पता न था,
मैं सीधी राह का राही, ठोंकरों का मुझे गुमाँ न था।

एक साजिश पल रही थी, दोस्तो के दिल में कही,
दोस्त नायाब मिलते रहे, जो दुश्मनों से कम नही,
शह पे शह खाते रहे, दोस्तों की मेहरबानी से ही,
मैं सीधी राह का राही, पर दोस्तों पे अब यकीं नहीं।

टेढ़े मेढ़े इन रास्तों से, जिन्दगानी मेरी गुजरती रही,
दोस्तों से जख्म खाए, दुश्मनी किसी से की नहीं,
चाल मेरी एक सी, नफरत दिल में कभी पली नहीं,
मैं सीधी राह का राही, जीवन की मुल्यों पर मुझे यकीं।