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Wednesday, 30 March 2016

मलिन हुआ वो धवल चाँद

आज रूठा हुआ क्युँ मुझसे मेरा चाँद वो?

वो धवल चाँद मलिन सा दिख रहा,
प्रखर आभा बिखेरती थी जो रात को,
जा छुपा घने बादलों की ओट में वो,
क्या शर्म से सिमट रही है चाँद वो?

आज रूठा हुआ क्युँ मुझसे मेरा चाँद वो?

किसी अमावस की उसको लगी नजर,
धवल किरणें उसकी छुप रही हैं रात को,
निहारता प्यासा चकोर नभ की ओर,
क्या ग्रहण लग गई है उस चाँद को?

आज रूठा हुआ क्युँ मुझसे मेरा चाँद वो?

सिमट रही कुम्हलाई सी वो बादलों में,
पूंज किरणों की बिखर गई है आकाश में,
अंधकार बादलों के छट गए हैं साथ में,
क्या नभ प्रेम में डूबी हुई है चाँद वो?

आज रूठा हुआ क्युँ मुझसे मेरा चाँद वो?