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Wednesday, 24 July 2019

चाँद के पार

धवलित है ये रात, हम हैं तैयार चलो....

कहते थे तुम, चाँद के पार चलो,
अब है हम तैयार चलो,
चाँद के पीछे ही कहीं, तुम आन मिलो,
चलो, अब रह जाएँ वहीं,
यूं, छुप जाएँ कहीं,
अब तो, चाँद के पार चलो...

विचलित है ये रात, हम हैं तैयार चलो....

तारे हैं वहीं, ख्वाब सारे हैं वहीं, 
ये सपन, हमारे हैं वहीं,
बहकी है ये कश्ती, अब सहारे हैं वहीं,
दुग्ध चाँदनी सी है रात,
ले, हाथों में हाथ,
संग मेरे, चाँद के पार चलो...

विस्मित है ये रात, हम है तैयार चलो....

वो थी, अधूरी सी इक कहानी,
इस दुनियाँ से, बेगानी,
सिमटती थी जो, किस्सों में कल-तक,
बिखरे हैं, वही जज्बात,
उम्र, का हो साथ,
संग-संग, चाँद के पार चलो...

धवलित है ये रात, हम है तैयार चलो....

(चंद्रयान-2 के सफल प्रक्षेपण से प्रभावित रचना)

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा