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Saturday, 6 January 2024

नजदीकियां

हुए सदियों, पर लगता है,
बस, अभी-अभी तो, लौटा हूँ...
उन गलियों से!

पहचाने से हैं, रस्ते उन गलियों के,
रिश्ते उन, रस्तों से,
करीबी हैं कितने ...
खबर है, जबकि मुझको,
फिर न पुकारेंगी,
वे राहें मुझे,
अपरिमित हो चली वो दूरियां,
अब कहां नजदीकियां?
उन गलियों से!

हुए सदियों, पर लगता है,
बस, अभी-अभी तो, लौटा हूँ...
उन गलियों से!

बसी है, इक खुश्बू अब तक इधर,
धड़कनों की, जुंबिश,
सांसों की तपिश...
उन एहसासों की, दबिश,
उन जज्बातों की,
इक खलिश, 
वे अपरिचित से लगे ही कब,
जाने, कैसा ये परिचय?
उन गलियों से!

हुए सदियों, पर लगता है,
बस, अभी-अभी तो, लौटा हूँ...
उन गलियों से!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)