पिघलते शब्दों के नश्तर,
स्वर वेदना के नासूर वाण बन,
छलनी कर जाते हृदय के प्रस्तर।
शब्दों मे होती इक कम्पन,
गुंजायमान करती वसुधा के मन,
जीवन की वीणा को ये छेड़ती निरंतर।
कम्पन गुम मेरे हृदय की,
शब्द वो पिघलते कहाँ अब मेरे मन,
ध्वनी के मधुर स्वर मिलते कहाँ परस्पर।
क्या कभी अब हँस पाऊँगा?
धुन हृदय प्रस्तर की क्या सुन पाऊँगा?
वेदना के वाण रह-रह चुभते हृदय पर।