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Sunday 12 January 2020

युग के युवा

युगद्रष्टा हो तुम, हो इस युग के तुम युवा,
तुम ही हो, इस युग के निर्णायक,
इक युग निर्माण के, तुम ही हो गवाह,
हो तुम, इस युग के युवा!

युगों की बली चढ़ी जब, जन्म तेरा हुआ,
हर युग में रावण, तूने ही संहारा,
युग की जिम्मेदारी का, कर तू निर्वाह,
हो तुम, इस युग के युवा!

हर युग में थी बाधाएं, तुमने ही पाई राहें,
तुमने ही दी, युग को नई दिशाएँ,
क्षण भर विचलित, तू ना कभी हुआ,
हो तुम, इस युग के युवा!

तुझ में प्रतिभा, तुझ में ही विलक्षणताएँ,
विवेकानन्द, तुम्ही तो कहलाए,
शून्य को तुमने ही, था व्योम बनाया,
हो तुम, इस युग के युवा!
हट के हो तुम, फिर क्यूँ भटके हो तुम?
अंजाने में, क्यूँ संशय में हो तुम,
युग लिखना है तुझे, तू कलम उठा,
हो तुम, इस युग के युवा!

राम तुम्हीं, कृष्ण तुम्हीं, युग तुमनें गढ़ा,
बाधा के, हर पर्वत पर तू चढ़ा,
संस्कारी ये भारत, तुझसे ही बना,
हो तुम, इस युग के युवा!

सारथी हो तुम, पौरुष और पुरुषार्थ के,
ध्वजवाहक, युग के सम्मान के,
हर युग तू जीवन, परमार्थ ही जिया,
हो तुम, इस युग के युवा!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Thursday 28 January 2016

पुरुष हूँ रखता हूँ पुरुषार्थ

पुरुष हूँ रखता हूँ पुरुषार्थ,
पुरुषोत्तम हूँ निभाता हूँ अपना धर्म,
भरम वादा का मैं तोड़ सकता नही,
ढूँढ लेना मुझे जीवन के उस मोड़ पर कहीं।

पुरुष हूँ, पुरुषोत्तम हूँ निभाऊंगा अपना धर्म सभी।

मिलना तुम उस मोड़ पे जीवन के वहाँ,
राहें उम्मीदों के सारे छूट जाते हैं जहाँ,
सूझता नही जब कुछ हाथों को,
आँखें की पुतलियाँ भी थक जाती हैं जहाँ।

पुरुष हूँ, पुरुषोत्तम हूँ निभाऊंगा अपना धर्म वहाँ।

इन्तजार करता मिलूँगा तुमको वहीं,
राहे तमाम गुजरती हो चाहे कही,
शिथिल पड़ जाएं चाहें सारी नसें मेरी,
दामन छूटे सासों का या लहु प्रवाह थक जाए मेरी।

पुरुष हूँ, पुरुषोत्तम हूँ निभाता हूँ अपना धर्म सभी।