जो सर्दियों में, खिली धूप थी गुनगुनी,
वो आप थे!
तभी तो, वो एहसास था,
सर्द सा वो हवा भी, बदहवास था,
कर सका, ना असर,
गर्म सांसों पर,
सह पे जिसकी, करता रहा अनसुनी,
वो आप थे!
जो सर्दियों में, खिली धूप थी गुनगुनी,
वो आप थे!
खुलने लगी, बंद कलियां,
प्रखर होने लगी, गेहूं की बलियां,
वो, भीनी सी, खुश्बू,
हर सांस पर,
बस करती रही, अपनी ही मनमानी,
वो आप थे!
जो सर्दियों में, खिली धूप थी गुनगुनी,
वो आप थे!
सर्द से, वो पल भूलकर,
गुनगुनी, उन्हीं बातों में घुलकर,
गुम से, हो चले हम,
जाने किधर!
अब भी, धुन पे जिसकी रमाता धुनी,
वो आप थे!
जो सर्दियों में, खिली धूप थी गुनगुनी,
वो आप थे!
(सर्वाधिकार सुरक्षित)