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Thursday 28 July 2016

रातों के रतजगे

ये रातों के रतजग, सब उनके हैं दिए,
नींदे चुराकर मेरी, न जाने किधर वो चल दिए?

कुछ कहा था कभी उसने,
जगाए थे उसने, आँखों में कितने ही सपने,
उम्मीद की शाख पर, फूल लगे थे खिलने,
रौशनी लेकर आई थी, आस की चंद किरणें,
अब कहाँ हैं वो बातें, बुझ रहें है अब वो जलते दिए,

ये रातों के रतजगे, सब उनके हैं दिए,
सपने सजाकर मेरी, न जाने किधर वो चल दिए?

कह दे उनसे जाकर ए मन,
उम्मीद ना जगाए इस तरह आँखों में कोई,
टूटते हैं उम्मीद, जब टूटती हैं साँसे कोई,
आस टूटते हैं हृदय के, आवाज नहीं कोई,
चीखते है सन्नाटे, बुझ रहे हैं अब आस के दिए,

ये रातों के रतजगे, सब उनके हैं दिए,
उम्मीद जगाकर मेरी, न जाने किधर वो चल दिए?

मन की कटोरे में, गूंज है उठती,
इक आह निकलती है, बस सन्नाटों को चीरती,
गुजर रही है रात, बस आँखों को मीचती,
घुप सा अंधेरा है, साया भी साथ नहीं देती,
वियावान है हर तरफ, साथ बस वो बुझते से दिए,

ये रातों के रतजगे, सब उनके हैं दिए,
छोड़ सन्नाटे में मुझको, न जाने किधर वो चल दिए?