यही सोच कर मैं होठों को सी लेता हूँ,
पी जाता हूँ आँसुओं को, मै चुप रह जाता हूँ,
मन की बात कटोरे मे मन के ही रख लेता हूँ।
आह सिमटती मेरी मन की गहराई में रोती सकुचाई,
व्यथा हृदय की फिर भी, मैं आहों को कह जाता हूँ,
ध्वनि होठों के कंपन की आहों में भर देता हूँ
चुप रह जाता हूँ मैं, आँखों के आँसू पी लेता हूँ।
आह सिमट जाती फिर मन की गहराई में रोती सकुचाई!
आह सिमट जाती फिर मन की गहराई में रोती सकुचाई!