Saturday 20 February 2016

आह सिमटती मन में

आह सिमटती मेरी मन की गहराई में रोती सकुचाई!

आह अगर सुन लेगा कोई तो होगी रुशवाई,
यही सोच कर मैं होठों को सी लेता हूँ,
पी जाता हूँ आँसुओं को, मै चुप रह जाता हूँ, 
मन की बात कटोरे मे मन के ही रख लेता हूँ।

आह सिमटती मेरी मन की गहराई में रोती सकुचाई,
व्यथा हृदय की फिर भी, मैं आहों को कह जाता हूँ,
ध्वनि होठों के कंपन की आहों में भर देता हूँ 
चुप रह जाता हूँ मैं, आँखों के आँसू पी लेता हूँ।

आह सिमट जाती फिर मन की गहराई में रोती सकुचाई!

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