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Sunday 21 February 2016

खुशियों के ढ़ेह

खुशियों के ये पल अन-गिनत इस जीवन में,
बार बार उठती ढ़ेह सी आती जाती जीवन मे,
इस पल को चुन चुन कर दामन मे हम भर ले,
हम-तुम जी-भर खुलकर इस पल मिल ले।

बस झणिक पल दो पल की हैं ये खुशियाँ,
लहर-लहर ढ़ेह की बस मिटने को बनती यहाँ,
इस ढ़ेह सी क्या जाने हम कहाँ और तुम कहाँ,
कुछ कह सुन लें पल-भर साथ थोड़ा बह लें।

उल्लास के ये दो पल हैं जीवन की निधियाँ,
करुणा की नन्हीं बूँदों सी पलती हैं खुशियाँ यहाँ,
पल पल जीवन बीतता तू इस पल जी ले यहाँ,
इक दिन मुरझाना है इस पल तो खिल लें यहाँ।

Saturday 23 January 2016

मौन धरा की वेदना

चाक पर पिसती मौन धरा की वेदना,
पाषाण हृदय क्या समझेगा जग में।

लहरों की तेज हाहाकार, 
है वेदना का प्रकटीकरण सागर का,
मौन वेदना की भाषा का हार,
पाषाण हृदय क्या समझेगा जग में।

गर्जनों की भीषण हुंकार,
है प्रदर्शन बादलों की वेदना का,
परस्पर उलझते बादलों की वेदना,
पाषाण हृदय क्या समझेगा जग में।

लहरें चूमती सागर तट को बार बार,
पोछ जाती इनके दामन हर बार,
पश्चाताप किसी भूल का करती?
पाषाण हृदय क्या समझेगा जग में।

घनघोर बादलों की आँसूवृष्टि,
धो डालती धरा का दामन हर साल,
आँसू है शायद ये किसी ग्लानि के!
पाषाण हृदय क्या समझेगा जग में।

विशाल हृदय धरा का,
खुद को निचोर सर्वस्व सागर को देता,
तपाकर खुद को रचना बादलों की करता,
चाक पर पिसती मौन धरा की वेदना,
पाषाण हृदय क्या समझेगा जग में।

Saturday 2 January 2016

फासले सदियों के

सदियों के हैं अब फासले,
दिल और सुकून के दरमियाँ,
पीर-पर्वतों के हैं अब दायरे,
सागर और साहिल के दरमियाँ।

खामोंशियों को गर देता कोई सदाएँ,
दिल की गहराईयों मे कोई उतर जाए,
साहिल की अनमिट प्यास बुझा जाए,
दूरियाँ ना रहे अब इनके दरमियाँ।

सागर-लहरों को मिल जाता किनारा,
पर्वत झूम उठता देख दिलकश नजारा,
साहिलों के भी सूखे होठ भीग जाते,
फासले जो हैं दरमियाँ वो मिट जाते।

Tuesday 29 December 2015

प्यासे जीवन की आशा

आग वो जो जीवन पीकर जलती है,
प्यार वो जो प्यालों में डूबकर मिलती है,
कोमलता वो जो तुम संग मिलती है,
मधुरता वो उस क्षण प्राणों में बसती है।

प्यास वो जो गरल पीकर बुृझती है,
आँसू वो जो तेरी यादों में बहती है,
सम्मुख वो जो जग से विमुख रहती है,
लहर वो जो तुझ संग हृदय में उठती है।

ओह! मन तू समझ ले जीवन की परिभाषा,
डाल दृष्टि उस अचेतन पर तू तजकर निराशा,
विमुख जो तुझको दिखता, वही है तेरे सम्मुख,
गरल मे ही संचित है, प्यासे जीवन की आशा।

Sunday 27 December 2015

तुम मुझसे दूर कहीं

तुम मुझ से है दूर कहीं और सोच रहा हूँ मैं....

जैसे मौन बह रहा हो लहरों में,
और आ छलका हो मेरे प्यासे प्यालों में,
उन लहरों से दूर, कहीं मौजों में जीता हूं मैं,
मौन लहर की वो खामोशी पीता हूं मैं.....

तुम मुझ से है दूर कहीं और सोच रहा हूँ मैं....

Friday 25 December 2015

जीवन क्या है?



जीवन इक डगर है, ठहर नहीं तू चलता चल,
पथ हों दुर्गम, रख साँसों में दम बढ़ता चल।

जीवन इक लहर है, पतवार लिए तू बढ़ता चल
धैर्य बना ध्रुवतारा, विपदाओं को परे करता चल।

जीवन इक समर है, हर संकट से तू लड़ता चल,
आत्मबल से हर क्षण को विजित करता चल।

जीवन इक प्यार है, दिलों से नफरत को तू तजता चल,
कर हिय को झंकृत, द्वेष घृणा पर विजय पाता चल।

जीवन इक समर्पण है, हृदय प्राण किसी को देकर चलता चल,
हाथों को हाथों मे ले, उनके दुख तू हरता चल।

जीवन इक विश्वास है, हर बाधाओं से मुक्त हो बढ़ता चल,
दुख से हारना नियति नहीं आशा और लगन से तू विजय पाता चल।

जीवन इक एहसास है, जियो हर क्षण को तुम बना संबल,
हर आने वाला पल, जुड़ जाए अतीत से हो विकल।