तुम मुझ से है दूर कहीं और सोच रहा हूँ मैं....
जैसे मौन बह रहा हो लहरों में,
और आ छलका हो मेरे प्यासे प्यालों में,
उन लहरों से दूर, कहीं मौजों में जीता हूं मैं,
मौन लहर की वो खामोशी पीता हूं मैं.....
तुम मुझ से है दूर कहीं और सोच रहा हूँ मैं....
जीवन के अनुभवों पर, मेरे मन के उद्घोषित शब्दों की अभिव्यक्ति है - कविता "जीवन कलश"। यूं, जीवन की राहों में, हर पल छूटता जाता है, इक-इक लम्हा। वो फिर न मिलते हैं, कहीं दोबारा ! कभी वो ही, अपना बनाकर, विस्मित कर जाते हैं! चुनता रहता हूँ मैं, उन लम्हों को और संजो रखता हूँ यहाँ! वही लम्हा, फिर कभी सुकून संग जीने को मन करता है, तो ये, अलग ही रंग भर देती हैं, जीवन में। "वैसे, हाथों से बिखरे पल, वापस कब आते हैं! " आइए, महसूस कीजिए, आपकी ही जीवन से जुड़े, कुछ गुजरे हुए पहलुओं को। (सर्वाधिकार सुरक्षित)
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