Showing posts with label विध्वंस. Show all posts
Showing posts with label विध्वंस. Show all posts

Sunday 9 August 2020

विध्वंस

यूँ भड़क उठती है, कहीं पीड़ बड़ी!
ज्यूँ, विध्वंस की है घड़ी!

शून्य चेतना, गगनभेदी सी गर्जना,
टूटती शिला-खंड सी, अन्तहीन वेदना,
चुप-चुप, मूक सी पर्वत खड़ी,
विध्वंस की, है ये घड़ी!

यूँ भड़क उठती है, कहीं पीड़ बड़ी!

हर तरफ, सन्नाटों की, इक आहट,
गुम हो चली, असह्य चीख-चिल्लाहट,
अनवरत, आँसूओं की है लड़ी!
विध्वंस की, है ये घड़ी!

यूँ भड़क उठती है, कहीं पीड़ बड़ी!

टूट कर, बिखरा है कहीं ये मानव,
मिल पाते नहीं, टूटे मन के वो अवयव,
इस मन की, किसको है पड़ी?
विध्वंस की, है ये घड़ी!

यूँ भड़क उठती है, कहीं पीड़ बड़ी!

करो शंखनाद, कर शिव को याद,
सृष्टिकर्ता, दु:खहर्ता से, कर फरियाद,
जटाएं, शिव की हैं बिखरी!
विध्वंस की, है ये घड़ी!

यूँ भड़क उठती है, कहीं पीड़ बड़ी!
ज्यूँ, विध्वंस की है घड़ी!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)