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Sunday, 21 January 2018

जीवन-चंद दिन

क्या है ये जीवन...?
कुछ आती जाती साँसों का आश्वासन!
कुछ बीती बातों का विश्लेषण!
या खिलते पल मे सदियों का आकर्षण!
सोच रहा मन क्या है ये जीवन?

कैसा ये आश्वासन?
हिस्से में तो सबके है ये चंद दिन,
हैं कुछ गिनती की साँसे,
क्या यूँ ही कट जाते हैं ये गिन-गिन?

तन्हा कब कटता है ये जीवन?
जीवन से हो हताश,
जिस पल भी ये मन हो निराश,
निरंतर भरने को उच्छवास,
जब करने हों प्रयास,
जगाकर मन के आस, तोड़ कर सारे कयास,
जो दे जाते हो आश्वासन,
कहता है मन, उन संग ही है ये जीवन!

क्यूँ ये विश्लेषण?
बीती बातों में क्यूँ देखे दर्पण,
माटी का पुतला ये तन,
क्यूँ न सृजन करें नव अवगुंठण!

बिन बातों के कब कटता जीवन?
रिश्तों का नवीकरण,
बातों का नित नया संस्करण,
मन से मन का अवगुंठण,
नव-भावों का संप्रेषण,
सिलसिला बातों का, चहकते जज्बातों का,
उल्लासित पल का संश्लेषण,
कहता है मन, खिलते बातों मे है जीवन!

कैसा यह आकर्षण?
कलियों का वो मोहक सम्मोहन!
फूलों का मादक फन!
लरजते से होठों पर हँसी का सावन!

बिन अंकुरण कब खिलता है जीवन?
चेहरे का यूँ प्रस्फुटन,
वो उनका मुस्काना मन ही मन,
या उनके शर्माने का फन,
झुकते से वो नयन,
जागी आँखों से, सपनों के घर का चयन,
पल में सदियों का आकर्षण!
कहता है मन, प्रकृति के कण मे है जीवन!

क्या है ये जीवन...?
कुछ आती जाती साँसों का आश्वासन!
कुछ बीती बातों का विश्लेषण!
या खिलते पल मे सदियों का आकर्षण!
सोच रहा मन क्या है ये जीवन?