कोई शामोसहर, गाता है कहीं तन्हा सा गजल.....
मेह लिए प्राणों मे, कोई दर्द लिए तानों में,
सहरा में कभी, या कभी विरानों में,
रंग लिए पैमानों में, फैलाता है आँचल.....
कोई शामोसहर, गाता है कहीं तन्हा सा गजल.....
किसी आहट से, पंछी की चहचहाहट से,
कलियों से, फूलों की तरुणाहट से,
नैनों की शर्माहट से, शमाँ देता है बदल....
कोई शामोसहर, गाता है कहीं तन्हा सा गजल.....
विह्वल सा गीत लिए, भावुक सा प्रीत लिए,
रीत लिए, धड़कन का संगीत लिए,
मन में मीत लिए, विरह में है वो पागल....
कोई शामोसहर, गाता है कहीं तन्हा सा गजल.....
विवश कर जाता है, यूँ मन को भरमाता है,
बरसता है, बादल सा लहराता है,
इठलाता है खुद पर, है कितना वो चंचल....
कोई शामोसहर, गाता है कहीं तन्हा सा गजल.....
मेह लिए प्राणों मे, कोई दर्द लिए तानों में,
सहरा में कभी, या कभी विरानों में,
रंग लिए पैमानों में, फैलाता है आँचल.....
कोई शामोसहर, गाता है कहीं तन्हा सा गजल.....
किसी आहट से, पंछी की चहचहाहट से,
कलियों से, फूलों की तरुणाहट से,
नैनों की शर्माहट से, शमाँ देता है बदल....
कोई शामोसहर, गाता है कहीं तन्हा सा गजल.....
विह्वल सा गीत लिए, भावुक सा प्रीत लिए,
रीत लिए, धड़कन का संगीत लिए,
मन में मीत लिए, विरह में है वो पागल....
कोई शामोसहर, गाता है कहीं तन्हा सा गजल.....
विवश कर जाता है, यूँ मन को भरमाता है,
बरसता है, बादल सा लहराता है,
इठलाता है खुद पर, है कितना वो चंचल....
कोई शामोसहर, गाता है कहीं तन्हा सा गजल.....