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Sunday, 5 April 2020

छू लेगी याद मेरी

जो होंगे, कुछ पल, तेरे सूने,
जब बिछड़ जाओगे, खुद से तुम,
तो आ जाएंंगी, मेरी यादें, 
अकले मेें, तुझे छूने!

संवर जाओगे, तुम तब भी,
निहारोगे, कोई दर्पण,
बालों को, सँवारोगे,
शायद, भाल पर, इक बिन्दी लगा लोगे,
सम्हाल कर, जरा आँचल,
सूरत को, निहारोगे,
फिर, तकोगे राह, 
तुम मेरी....

जो होंगे, कुछ पल, तेरे सूने!

अन-गिनत प्रश्न, करेगा मन!
उलझाएगा, सवालों में,
खोकर, ख़्यालों में,
शायद, आत्म-मंथन, तब तुम करोगे,
खुद को ही, हारोगे,
फिर, चुनोगे तुम,
राह मेरी....

जो होंगे, कुछ पल, तेरे सूने,
जब बिछड़ जाओगे, खुद से तुम,
तो आ जाएंंगी, मेरी यादें, 
अकले मेें, तुझे छूने!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Monday, 20 February 2017

सँवरती रहो

ऐ मेरी संगिनी, देखूँ जब जब भी मैं तुमको......

सजी-सँवरी सी दिखना, दिखना जब भी तुम मुझको,
हो माथे पे बिंदिया, हाथों में क॔गन, मांग सिंदूरी तेरी हो,
चुनरी हो सर पे, इन होठों पे बस इक हँसी सजी हो,
आँखों की भंगिमाएँ सम्मोहक हों, श्रृंगार नई हों।।

ऐ मेरी संगिनी, देखूँ जब जब भी मैं तुमको....

तुम झूमकर बलखाती, अंकपाश में भर लेती मुझको,
आँखों में चमक,बातों में खनक,पंछी सी यूँ चहकती हो,
सुरीली सी स्वर हो, राग पिरोती मिश्री सी तेरी बातें हो,
आशाओं के सावन हों, बस आकर्षण के पल हों।।

ऐ मेरी संगिनी, देखूँ जब जब भी मैं तुमको....

बगिया सा तेरा आँचल, मुस्कुरा कर पुकारती मुझको
खनकते कंगन,छनकते पायल, कुछ कह जाती मुझको,
घटाओं से तेरे गेशू, मन की आकाश पर लहराते हों,
सजते हों रंग होली के, मौसम त्योहारों के जैसे हों।

ऐ मेरी संगिनी, देखूँ जब जब भी मैं तुमको....
यूँ ही खिलती सँवरती रहो तुम, देखूँ जब भी मैं तुमको..