हसीन कितने, हैं ये नजारे,
पर, अब भी,
तुझे ही, देखते हैं वो सारे!
तुम ही तो लाये थे, झौंके पवन के,
ये नूर तेरे ही, नैनों से छलके,
बिखरे फलक पर, बनकर सितारे,
बादलों के किनारे!
हसीन कितने, हैं ये नजारे,
पर, अब भी,
तुझे ही, देखते हैं वो सारे!
रोकती हैं, हसरत भरी तेरी निगाहें,
रौशन है तुझसे, घटाटोप राहें,
उतरा हो जमीं पर, वो चाँद जैसे,
पलकों के सहारे!
हसीन कितने, हैं ये नजारे,
पर, अब भी,
तुझे ही, देखते हैं वो सारे!
बिखर सी गई, उम्र की, ये गलियाँ,
निखर सी गईं, और कलियाँ,
यूँ तूने बिखेरा, खुशबू का तराना,
आँचलों के सहारे!
हसीन कितने, हैं ये नजारे,
पर, अब भी,
तुझे ही, देखते हैं वो सारे!
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