चलो न हम रंगें, ये जमीं, ये विश्व, ये आकाश,
अनूठे से, ये तीन रंग, हैं हमारे पास!
पर्वतों के शीष पर, हैं बिखेरे हमने रंग,
ये पहाड़ दुग्ध से, सदा ही हँसे हैं हमारे संग,
सन गए ये कभी, आतंक के खून संग,
खामोश से हुए, दुग्ध के आकाश!
चलो न हम रंगें, इस तिरंगे सा, ये पर्वताकाश!
रंग ये केसरी सा, बह रहा लहू के संग,
रंग जाएगी सरज़मीं, गर कट गए ये मेरे अंग,
मुल्क के ही वास्ते, बह रहा मेरा ये रंग,
केसरी सा ये रंग, है रंगों में खास!
चलो न हम रंगें, ये जमीं, ये नभ, ये आकाश!
पथरीली राह पर, है बिछा हरा सा रंग,
हँस रही ये सरजमीं, इन हरे-हरे रंगों के संग,
खिल उठे हैं खेत, उत्सवों के हैं उमंग,
हरा सा ये रंग, भर गया उल्लास!
क्यूं न हम रंगें, ये जमीं, ये विश्व, ये आकाश?
शान्ति का प्रतीक, है बना धवल ये रंग,
विश्व-शान्ति का संदेश, दे रहा धवल ये रंग,
क्लेश से परे, उज्जवल, धवल ये रंग,
उजाले यही, सदा ही होते काश!
फिर क्यूं न हम रंगें, इस विश्व का आकाश?
चलो न हम रंगें, ये जमीं, ये नभ, ये आकाश,
अनूठे से, ये तीन रंग, हैं हमारे पास!