Showing posts with label हल्की. Show all posts
Showing posts with label हल्की. Show all posts

Sunday 2 October 2016

हल्की सी हवा

हल्की सी वो हवा थी, जो हौले से तन को छू गई....

वादी वो हरी-हरी खिली-खिली सी,
झौंके हवाओं के हल्के से, मदहोश कर गई,
गुनगुनाने लगा है मन उन वादियों में कहीं,
चल पड़े हैं बहके कदम मेरे, दिशाहीन से कहीं....

हल्की सी वो सिहरन थी, जो हौले से तन को छू गई....

शायद कल्पनाओं की है ये इक लरी,
शब्द मेरे ही गीतों के, वादी में गुंज रही हैं कहीं,
मुस्कुराने लगा है मन, हवा ये कैसी चली,
थिरक रहे हैं रोम-रोम, धुन छिड़ी है ये कौन सी.....

हल्की सी वो चुभन थी, जो हौले से तन को छू गई....

सच कर लूँ मैं भरम मन के वही,
दोहरा लूँ फिर से वही अनुभव सिहरन भरी,
बह जाये वो पवन, इन्ही वादियों में कहीं,
दिशाहीन बहक लूँ मैं, सुन लूँ इक संगीत नई......

हल्की सी वो अगन थी, जो हौले से तन को छू गई....